कई यूनानी लेखकों के अनुसार वह अपनी राजधानी एलेक्जेंड्रिया की सड़कों पर बर्फ से भी अधिक सफ़ेद घोड़ों के सोने के चमचमाते हुए रथ पर सैर को निकलती थी.अमावस की रात से भी ज्यादा काले ,खुले हुए अपने बालों को पीठ पर लहराती हुई ,ऊपर से नीचे तक श्वेत वस्त्रों से सुसज्जित.सर पर केवल एक स्वर्ण -मुकुट, गरुड़ की शक्ल का और गले में बसरे के बड़े - बड़े मोतियों का हार.बगल में दोनों ओर दो श्वेत वस्त्रधारिणी परिचारिकाएँ- परियों से मुकाबला करती हुई खड़ी रहतीं ,हाथों से चंवर डुलाती हुई .रानी क्लियोपैट्रा संसार प्रसिद्ध अपनी सुन्दरता को चारों ओर बिखेरती हुई चलती तो एक समां बंध जाता.लोग घरों से निकल पथ के दोनों और कतार बांध खड़े हो जाते,महज देखने के लिए.
इस सारे श्रृंगार की सबसे बड़ी देन थे, मोतियों के अलंकार. उन्हें वह अपने विभिन्न अंगों पर सजाती और उनके चेहरे और सफ़ेद कपड़ों पर खूब सजते.मोती के भी,खासकर बसरे के ख़ास आकार के मोती के हार जो उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगाते थे.
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को भी जेवरातों में सबसे अधिक प्रिय मोती के हार लगते. जब अंग्रेजी फौजों ने झाँसी के किले पर घेरा डाल दिया तो उन्होंने एक रात सबको इकठ्ठा कर अपने सारे जेवरात बाँट दिए और अपना प्रिय मोतियों का हार पहन कालपी की ओर निकल पड़ी.अपना अंत समय आते देख मोतियों के हार को गले से निकाल कर सैनिकों को यह कहकर दिया कि बहुत कीमती हैं.इन्हें आपस में बाँट लें.
मोती हमेशा से नारी श्रृंगार का एक बहुत बड़ा अंग रहा है और नारियों को हीरा ,माणिक,पुखराज से भी ज्यादा प्रिय बसरे के वे मोती हैं ,जो आज आमूल विनाश के कगार पर खड़े हैं .
मोती कई प्रकार के होते हैं .पहली श्रेणी उन मोतियों की है,जो अरब सागर से निकली हुई संसार - प्रसिद्ध ईरान की खाड़ी में युगों - युगों से होते आये हैं.यहाँ के सीप आकार में औरों की अपेक्षा कुछ ज्यादा बनावट में भी बड़े होते हैं एवं उनकी बनावट में भी कुछ अंतर होता है .जिसे सदियों से संसार बसरा मोती के नाम से जाना जाता रहा है,वे इन्हीं के उदर से पैदा होते हैं. ये विशुद्ध मोती हैं ,यानि सहज रीति से उत्पन्न,इसमें मानव हाथों का कोई हिस्सा नहीं होता.सभी सीपों से मोती उत्पन्न नहीं होते ,कुछ ही में होते हैं .शायद इस विचार या कल्पना का भी कि जिस सीप पर स्वाति नक्षत्र की बूंदें पड़ती हैं,उन्हीं में मोती उत्पन्न होता है,का आधार भी यही दुर्लभता है.
अरब सागर से निकली हुई मानो उसकी एक बांह हो फारस की खाड़ी,जिसमें संसार के सबसे,चमकीले तथा रंगबिरंगे मोती पैदा होते रहे हैं.प्रशिक्षित डुबकी लगाने वाले नावों से कूद-कूद कर पानी की सतह में चले जाते हैं और बोरी भरकर सीप उठा लाते हैं . किन सीपों में मोती है उन्हें इस बात का आभास मिल जाता है और वे कुछ प्रक्रियाओं के द्वारा उन्हीं में से मोती निकाल लेते हैं बाकी को पुनः जल के अन्दर डाल देते हैं ताकि कालांतर में वे भी मोती के वाहक बन सकें .जिन सीपों के भीतर से वे मोती निकाल लेते हैं,वे मर जाती हैं .
ईरान की खाड़ी के इन सीपों को ही यह गौरव प्राप्त था कि वे सारी दुनियाँ में सबसे ज्यादा क़द्र किये जाने वाले मोती प्राप्त कर पाते थे तथा वे केवल सफ़ेद ही नहीं,कई रंग के मोती उत्पन्न करते थे,गुलाबी,नारंगी और काले जो संसार में विरले ही पाए जाते हैं .काले मोती ऊँचे दामों पर बिका करते थे.खाड़ी के इन सीपों में मोती का निर्माण अपने आप से होता है .सीप के भीतर यानि उदार में एक प्रकार का गहरा रस यानि तरल पदार्थ स्वतः जमा होने लगता है,तह-पर तह.पहले तो वह कोमल होता है,पर धीरे -धीरे उसकी कठोरता बढ़ती जाती है और यह काफी मोटा और कठोर बन जाता है .साथ -साथ इसकी चमक में भी इजाफ़ा होता है और ज्यादा आकर्षक लगने लगता है .यह क्रम प्रायः दस साल तक चलता रहता है ,तभी यह उस रूप को पकड़ता है जिसे हम मोती कहते हैं .
बसरा दक्षिण-पूर्व इराक का एक शहर है ,जो दजला -फ़रात नदियों और ईरान की खाड़ी से जुड़े हुए अल -अरब नदी के करीब पड़ता है .युगों से यह मोती और गुलाब के फूलों के लिए मशहूर बना रहा है .मोती की कटाई करने वाले कारीगरों का यह गढ़ बना रहा है तथा संसार में ईरान की खाड़ी से निकले हुए मोतियों की सबसे बड़ी मंडी भी .यही कारण है ,इन मोतियों को 'बसरा मोती ' के नाम से पुकारा जाता है .अरब सागर और खाड़ी के सारे मोती पहले इसी मंडी में आते हैं,फिर यहाँ से यह देश -विदेश और संसार के विभिन्न शहरों में जाकर बिकते हैं . इसके व्यापारी इन्हें यहाँ कम कीमत में खरीदकर इनका दूर - दूर के देशों तक व्यापार किया करते हैं .
खलीफों के दरबार में बसरा के मोतियों की बड़ी मांग थी .वे यहीं से खरीद कर बग़दाद और दमिश्क ले जाया करते थे. रूस की जारीन इन मोतियों को काफी पसंद करती थीं .वहां ये व्यापारी काफी बड़ी कीमत पर इन्हें बेचा करते थे. हिंदुस्तान में भी इनकी काफी कीमत थी ,पर तब जबतक की खाड़ी के सीपों का संहार नहीं हुआ था .
इनके बुरे दिन तब आये ईरान तथा खाड़ी के चारों ओर के चारों ओर के अन्य देशों में तेल के हजारों कुएँ निकल आए थे .तेल की आज संसार में इतनी मांग है कि वह सोने से भी कीमती हो रहा है तथा मध्पूर्व के इन देशों की समृद्धि बढ़ गई है .इन सबके बीच उन्हें मोती की कोई परवाह नहीं .तेल के कुओं से निकले तेल के गंदे हिस्से को,जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है,खाड़ी के जल में फेंक देते हैं .यह सीपों और मछलियों के लिए जहर है .फलतः इससे दूषित खाड़ी के जल के स्पर्श मात्र से वे मर जाते हैं .
आज स्थिति यह है कि संसार में बसरा मोती का पाना असंभव सा हो रहा है . हिंदुस्तान से बसरा के इन मोतियों की ऊँची कीमतें देकर विदेशी खरीद ले गए .अभी भी इनकी तलाश में दिल्ली ,जयपुर आदि शहरों में दलालों का दामन पकडे हुए घूमते नजर आते हैं .आज यदि अपने देश में बसरा मोती यदि कहीं बचे हुए हैं लखनऊ ,जयपुर आदि के कुछ पुराने घरों में जहाँ की महिलाएँ इन्हें बेचना नहीं चाहती .चूँकि ये सुहाग की वस्तु के अंग हैं -गले के हार ,नाथ और मांग में पहनने वाले मंगल टीका आदि में लगे हुए ,इसलिए इसे बेचना अच्छा नहीं समझा जाता.
कुछ बरसों में बसरा के मोती की सिर्फ यादें रह जाएँगी. एक न एक दिन मध्यपूर्व के तेलों के कुएँ सूख जाएँगे लेकिन खाड़ी के सीपों में प्राण नहीं लौटेंगे.
मोतियों की अनेक किस्मों में एक मोती कल्चर श्रेणी के हैं. ये अधिकांशतः जापान में पाए जाते हैं। प्रशिक्षित गोताखोर समुद्र में डुबकी लगाकर झोलियों में सीप बाहर निकल लेट हैं। फिर उनके भीतर शीशे की एक सुडौल गोली डाल देते हैं और पुनः समुद्र के काफी भीतर डाल आते हैं। एन गोलियों पर भी तरल पदार्थ की परत दर परत जमा होने लगती है,जो दो से पांच वर्षों में मोती का रूप धारण कर लेता है। इन्हें तराशने की जरूरत नहीं पड़ती. पर ये शुद्ध नहीं होते. फिर भी इनकी मांग बढ़ रही है। श्रृंगार के लिए आज इनका ही उपयोग हो रहा है.
ईरान की खाड़ी के बाद जापान का समुद्र ही मोतियों के लिए विख्यात है पर इनमें खाड़ी के मोतियों के सामान चमक नहीं होती।
एक श्रेणी के मोती मानव निर्मित होते हैं जो शीशे की गोलियों पर मछलियों के चोइयें की मदद से बनाया हुआ ,एक प्रकार का गहरा लेप चढ़कर बनाया जाता है जो सूख कर काफी सुन्दर बन जाता है। और ये गोलियां हूबहू मोती जैसी लगती हैं।
एक किस्म की मोती वे हैं जो छोटी छोटी नदियों के गर्भ में बालू के साथ मिले हुए सीपों में पाए जाते हैं.ये बहुत छोटे कद के होते हैं-सरसों जैसे. इनका एकमात्र उपयोग आयुर्वेदिक औषधि बनाने में होता है. मोती की भष्म इन्हीं से बनायीं जाती है- खरल में,गुलाब जल के साथ इन्हें पीसकर. आयुर्वेद में कई रोगों में मोती की भष्म महाऔषधि मानी गई है.
ज्ञानवर्धक जानकारी। पहले कौड़ी और अब मोती!! बहुत बढ़िया सर!!
ReplyDeleteआपके चिठ्ठे का अनुसरण कर रहे हैं।
एक बार अवश्य पढ़े : एक रहस्य का जिंदा हो जाना - शीतला सिंह
सादर धन्यवाद ! कौड़ी एवं मोती का हमारे सामाजिक जीवन में बहुत महत्व है.इसकी महत्ता पर थोड़ी सी जानकारी भर प्रस्तुत की गई है.सराहना के लिए आभार .
Deleteमोती के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दिए,धन्यबाद।
ReplyDeletePLEASE REMOVE COMMENTS WORD VERIFICATION.
सादर धन्यवाद !सराहना के लिए आभार .
Deleteमोती के संबंध में बहुत अच्छी जानकारी दी है .इसका सामाजिक महत्व कम नहीं है .
ReplyDeleteधन्यवाद !सराहना के लिए आभार.
Deleteमोती तो सचमुच अनमोल है.नई जानकारी के साथ बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !सराहना के लिए आभार .
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {मंगलवार 20/08/2013} को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह
hindiblogsamuh.blogspot.com
पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सादर धन्यवाद !मेरी रचना शामिल करने के लिए 'हिन्दी ब्लॉग समूह' का आभार
Deleteसादर धन्यवाद ! मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार .
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञान वर्धक लेखन |जक्सन के बाद आपको यहाँ पढ़कर दिल खुश हों गया |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अजय जी .सराहना के लिए आभार .
Deleteमोतियों के बारे में अनमोल जानकारीयां समेटे हुए आपका यह लेख सराहनिय है.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! सराहना के लिये आभार .
Deleteमोतियों के बारे में ज्ञान वर्धक लेखन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteमेरे पास बसरे के मोती हैं कोई खरीदना चाहे तो।।।।।।।।09464359310
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