Friday, October 4, 2013

नई अंतर्दृष्टि : मंजूषा कला


                                                                         
बिहार में मधुबनी पेंटिंग के अलावा मंजूषा कला का भी अहम् स्थान है.मंजूषा कला अंग देश की प्राचीन राजधानी चंपाअब भागलपुर एवं उसके आस -पास के क्षेत्रों से की प्राचीन विषहरी पूजा से जुड़ी हुई है.

मंजूषा कला को राष्ट्रीय विरासत में भी शामिल किया गया है. मंजूषा बांस,जूट,पुआल और कागज के बने मंदिर के आकार के बॉक्स जैसे हैं,जिन्हें सावन और भादो माह के सिंह नक्षत्र में विषहरी पूजा के अवसर पर बनाया जाता है.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में द्वितीय शताब्दी के चंपा का जिक्र किया है.चंपा अंग प्रदेश (अब,भागलपुर)की राजधानी थी,जो बाली के पुत्र अंग के नाम पर पड़ा था.यह मौर्य शासक सम्राट अशोक के साथ - साथ 12 वें तीर्थंकर वासुपूज्य की जन्मस्थली भी है.

जनश्रुतियों के अनुसारभगवान् शिव की मानस पुत्रियाँ मनसा, मैना,अदिति, जया और पद्मालोगों द्वारा भगवान शिव,पार्वती,गणेश और कार्तिक की  पूजा किये जाने से ईर्ष्यालु होकर भगवान शिव के पास गई और अपनी समस्या बताई. भगवान शिव ने कहा कि,तुम पृथ्वी पर तभी पूजी जाओगी, जब चंपा के निवासी चांदो तुम्हारी पूजा करेंगे.इतना सुनने के बाद मनसा चांदो के पास गई और उनकी पूजा करने को कहा,लेकिन चांदो ने इंकार कर दिया.

इससे कुपित होकर व्यापार के लिए जा रहे चांदो के नाव को उसने डुबा दियाइससे चांदो(चंद्रधर) के छह पुत्रों की डूबने से मौत हो गईफिर भी चन्द्रधर ने उनकी पूजा करने से इंकार कर दिया. चंद्रधर के सातवें पुत्र बाला लखेन्द्र का विवाह बिहुला से हुआ. इतनी लम्बी अवधि के बाद भी मनसा बहनों का क्रोध थमा नहीं था और बाला को विवाह के रात ही मारने की धमकी दी,तथापि एहतियाती उपाय के रूप में लोहे और बांस से बने घर में बाला और बिहुला को रखा गया. लेकिन विवाह की रात,सर्प के डंसने से बाला की मौत हो गई .

बिहुला ने विश्वकर्मा से मंजूषा के आकार का एक बड़ा नाव तैयार करवाया और अपने पति के शव को लेकरदेवताओं से अनुरोध करउसे पुनर्जीवित करवाने के लिए देवलोक रवाना हुई.देवताओं के अनुरोध पर बाला की जिंदगी वापस मिल गई और कहते हैं कि बाला और बिहुला देवलोक से वापस लौट आए. तब उन्होंने चंद्रधर को मनसा (विषहरी) की पूजा के लिए मनाया.

तब से विषहरी पूजा,लगातार तीन दिनों के लिए भाद्र माह के सिंह लग्न में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन बाला को सर्प ने डंसा था.ऐसा विश्वास किया जाता है कि सर्प की देवी की पूजा करने से, सर्प के काटने का भय नहीं रहता. इस दिन बाला और बिहुला से संबंधित नाटकों का भी मंचन होता है.

मंजूषा 4 कोने पर बनता है, लेकिन कुछ विशेष प्रकार के मंजूषा  में 6 एवं 8 कोने भी होते हैं. मंजूषा के विशेष प्रकार में, कई अलग अलग तरह के डिजाइन एवं सुंदर बनाने के लिए अन्य सामग्रियों का भी उपयोग किया जाता है. सामान्य या विशेष तौर पर, मंजूषा में पत्ते,विषहरी बहनों, व्यापारी चंद्रधर, बाला लखेंद्र, मगरमच्छ, चंपा प्रदेश और सांप के चित्र बनाये जाते हैं, जिनमें जीवन के पूर्ण रंग के साथ शानदार तरीके से बाला-बिहुला की कहानी का चित्रण बोर्ड पर किया जाता है. मगरमच्छ ,गंगा, चाँद, सूरज आदि के प्रतीक मुख्य रूप से महत्वपूर्ण हैं. बिहुला के खुले बालों के साथ चित्र और बगल में सांप एवं विषहरी बहनों के प्रतीक बनाये जाते हैं.मंजूषा कला को आम तौर पर  जीवंत बनाने के लिए हरा, पीला और लाल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है.

यह विश्वास किया जाता है कि आज भी भागलपुर और उसके आस-पास उसी तरह से मंजूषा का निर्माण होता है जैसा विश्वकर्मा के द्वारा बनाया गया था.प्रत्येक वर्ष सिंह नक्षत्र के आगमन के साथ ही लोग मंजूषा बनाना प्रारंभ करते हैं. लालहरे और पीले मंजूषा देखने में काफी आकर्षक लगते हैं .

प्रसिद्द पुरातत्वविद डॉ. बी. पी. सिन्हा ने 1970 -71 में चंपा (भागलपुर) क्षेत्र में उत्खनन के दौरान कई सर्पाकार मूर्तियों,जिनमें मानव सिर थे,पाया.संभवतः यह सिन्धु सभ्यता से जुड़े लगते हैं.खुदाई से प्राप्त 'टेरेकोटा सर्प कला' के प्राप्त होने से यह भी जानकारी मिलती है कि उस समय अंग प्रदेश में सर्प की पूजा प्रचलित थी.

यद्यपि,मंजूषा कला को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है,लेकिन भागलपुर  एवं इसके आस -पास की यह कला सरकार और सामाजिक संगठनों से उचित प्रोत्साहन के अभाव में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती नजर आती है,और इसके साथ ही इससे जुड़े लोगों को भी अन्य व्यवसायों की ओर रुख करना पड़ रहा है.

41 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन एवं रोचक जानकारी...
    धन्यवाद ..
    :-)

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  2. मंजूषा कला का विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद !

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    1. सादर धन्यवाद ! राकेश जी . आभार .

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  3. बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक

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    1. सादर धन्यवाद ! अजय जी. आभार .

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  4. विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद

    शब्दों की मुस्कुराहट पर ....क्योंकि हम भी डरते है :)

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    1. सादर धन्यवाद ! संजय जी . आभार .

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  5. बेहतरीन जानकारी के साथ हमारा ज्ञानवर्धन करने के लिए आपका सहर्ष धन्यवाद सर।।

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    ब्लॉग से कमाने में सहायक हो सकती है ये वेबसाइट !!

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    1. सादर धन्यवाद ! हर्ष . आभार .

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  6. बेहतरीन एवं रोचक जानकारी...........धन्यवाद

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    1. सादर धन्यवाद ! कौशल जी . आभार .

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति...

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    1. सादर धन्यवाद ! प्रतिभा जी . आभार .

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  8. क्या बता है दोस्त संग्रह करने लायक आलेख मंजूषा इतिहास पुराण के झरोखे से।

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    1. सादर धन्यवाद ! आदरणीय वीरेन्द्र जी . आभार .

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  9. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 06/10/2013 को इक नई दुनिया बनानी है अभी..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः018 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें और फॉलो कर उत्साह बढ़ाएँ | सादर ....ललित चाहार

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 06/10/2013 को
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  11. बहुत अच्छी जानकारी बेहद खुबसूरत प्रस्तुति!!

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  12. बेहतरीन जानकारी के साथ ज्ञानवर्धन करने के लिए आपका सहर्ष धन्यवाद राजीव जी।

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    1. सादर धन्यवाद ! मनोज जी . आभार.

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  13. बहुत ही बेहतरीन एवं रोचक जानकारी, धन्यवाद राजीव जी।

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    1. सादर धन्यवाद ! राजेंन्द्र जी . आभार.

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  14. Replies
    1. सादर धन्यवाद ! जोशी जी . आभार.

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  15. बहुत अच्छी जानकारी बेहद खुबसूरत प्रस्तुति
    नवरात्रि‍ की हार्दिक शुभकामनाएं

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  16. सुन्दर और नवीन जानकारी !!

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  17. सादर धन्यवाद ! पूरण जी .आभार .

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  18. मंजूषा कला की जानकारी के लिए आभार ... अपनी धरोहर को बचाने में ये सफल प्रयास है ...

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    1. सादर धन्यवाद ! नासवा जी . आभार .

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  19. बिलकुल ही नयी जानकारी सुलभ कराई है आपने. सादर बधाई के साथ

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  20. इतिहास, लोककला और परंपरा का संगम मंजूषा कला के बारे में आपने कई नई जानकारियां दी है, आपका आभार

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