पिछले कई सालों की भांति इस
साल भी ग्रीष्मावकाश में मुंबई में था.छोटी बहन वहां के एक प्रतिष्ठित स्कूल में
गणित की शिक्षिका है.एक महीने के लम्बे ग्रीष्मावकाश में उसे घर आने और सबों से मिलने-जुलने का अवसर मिल जाता है.वापसी में अक्सर मैं ही उसे पहुँचाने
मुंबई जाता हूँ.इस बहाने कुछ घूमना फिरना भी हो जाता है.इस बार दस वर्षीय भांजे ने
बताया कि एक प्रतिष्ठित चैनल पर चल रहे जूनियर डांस रियल्टी शो के अंतिम चार में पहुँचने
वाली लड़की इसी अपार्टमेंट के पहले तल्ले पर रहती है और उसी के शो जीतने की संभावना है.
बात आयी गयी हो गयी.एक शाम
अपार्टमेंट से नीचे उतर कर मुख्य सड़क पर जाने के बारे में सोच ही रहा था कि
बिल्डिंग के अहाते में काफी शोरगुल सुनाई दिया.अच्छी खासी भीड़ जमा हो चुकी
थी.पूछने पर पता चला एक बच्ची बेहोशी की अवस्था में थी.लगभग एक घंटे बाद वापस
लौटने पर छोटी बहन ने बताया कि जूनियर रियल्टी शो वाली बच्ची शो से बाहर हो जाने
पर सदमें में थी और कई बार बेहोश हो चुकी थी.
इस घटना से कुछ वर्ष पहले
की एक घटना की याद ताजा हो गई.कोलकाता में बच्चों के इसी तरह के एक शो से एक बच्ची के
बाहर होने पर,सदमे के कारण उसकी आवाज चली गई थी,जिसे चिकित्सकों के अथक प्रयास के
बाद वापस लाया जा सका.ऐसे शो न केवल बच्चों बल्कि उनके माता-पिता एवं अभिभावकों के
लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाते हैं.बच्चों के मन में यह बात बैठा दी जाती है
कि केवल उसे ही जीतना है,और इससे कम कुछ नहीं.नतीजतन, सफल नहीं होने पर ऐसे बच्चे कुंठा
के शिकार हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि उनकी दुनियां ही समाप्त हो गई है.जबकि इस
तरह की कोई भी प्रतियोगिता बच्चों की समुचित प्रतिभा का आकलन करने के लिए पर्याप्त
नहीं है.
बच्चों के माता-पिता को ऐसे
शो में गर्व के साथ कहते दिखाया जाता है कि हालांकि वे इस विधा में आगे नहीं बढ़
सके लेकिन चाहते हैं उनके बच्चे इस क्षेत्र में आगे बढ़ें.ऐसी महत्वाकांक्षा बुरी
नहीं,लेकिन स्वस्थ प्रतियोगिता और असफलता को सामान्य रूप से लेना भी यदि माता-पिता
सिखा सकें तो कोई कारण नहीं कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति हो.
सामान्यतया बच्चे ऐसा कहते
पाए जाते हैं कि उनके माता-पिता चाहते हैं कि वह इंजीनियर,डॉक्टर बने,क्योंकि उनके
माता या पिता भी इंजीनियर या डॉक्टर हैं,भले ही बच्चों की अभिरुचि का क्षेत्र अलग
हो.
सभी बच्चों में एक ही तरह की प्रतिभा एवं रूचि नहीं पायी जाती.जुड़वां बच्चों तक
में अलग-अलग तरह की प्रतिभा और रुचियों का पाया जाना सामान्य बात है.ऐसे में यदि
बच्चों की रूचि के अनुसार कैरियर का विकल्प मिले तो इससे अच्छी बात कोई
नहीं.माता-पिता और अभिभावकों की जिम्मेवारी और भी अधिक है कि बच्चे की अभिरुचि के अनुसार
ही शैक्षणिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाय.
बढिया सुंदर आलेख , राजीव भाई धन्यवाद !
ReplyDelete॥ जय श्री हरि: ॥
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई. आभार.
Deleteविचारणीय । देखा देखी कहाँ ले जायेगी पता नहीं ?
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-07-2014) को "अच्छे दिन हैं दूर, कीजिये काँय काँय-काँ ; चर्चा मंच 1668 पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteसच, उम्मीदें बोझ न बनें ...... विचारणीय हर अभिभावक के लिए
ReplyDeleteकई बिन्दुओं को छुआ है आपने इस पोस्ट में अतिशय महत्वकांशा मारक सिद्ध होती है। बचपन को बचपन ही रहने दो उसमें महत्वकांक्षा न घुसाई जाए तो बेहतर। सहज पल्लवन ही स्थाई पल्लवन है न की अति उत्साही मायावी पल्लवन।
ReplyDeleteविचारणीय...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबच्चे की अभिरुचि के अनुसार ही शैक्षणिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाय..... बिलकुल सही बात ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
सादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteये सच है की बच्चे की रूचि अनुसार उसका मार्ग तय हो पर कई बार बचे भी नहीं समझ पाते की उनकी रूचि किस में है ... हाँ आपकी बात से सहमत हूँ की अत्यधिक अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहियें और न ही बच्चों पर बोझ डालना चाहिए किसी भी बात का ...
ReplyDeleteअपनी महत्वाकांक्षाओं का बोझ जब अभिवावक बच्चों पर लाद देते हैं तो यही हश्र होता है , आज हमने अपने बच्चों का बचपन छीन लिया है, पर यह बहुत ही विचारणीय है
ReplyDeleteबच्चों पर अपनी उम्मीदों का बोझ न डालें...बहुत सारगर्भित आलेख...
ReplyDeleteहम बच्चों के अभिरुचि के विरुद्ध अपनी महत्वाकांक्षाओं के अनुसार बच्चों पर दबाव बनांते हैं तो इसका प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिलता ही है। बहुत ही विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! राजेंद्र जी. आभार.
Deleteबचपन का एहसास छीन रहे हैं रियलिटी शोज़
ReplyDeleteजी,बिल्कुल सही कहा, आ. वीरेन्द्र जी.
Deleteआभार.
ब्लॉग बुलेटिन की आज गुरुवार १० जुलाई २०१४ की बुलेटिन -- राम-रहीम के आगे जहाँ और भी हैं – ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार.
Deleteबच्चे की अभिरुचि के अनुसार ही शैक्षणिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाय..... बिलकुल सही बात ..बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति
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