ऋषियों,मुनियों के तप,तेज और ज्ञान के अहंकार तथा
श्राप की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं लेकिन एक क्षत्रिय के ब्राहमण को श्राप देने की
कथा बिरले ही मिलती है.इस सन्दर्भ में निमि की कथा बहुत रोमांचक,शाश्वत,और गहरे अर्थवाली है,प्रगतिशीलता और युगधर्मिता से
जुड़ी है.श्रीमद्भागवत और देवीपुराण में इस कथा को विस्तार मिला है.इसमें दो शापों
की टकराहट है.संभवतः पहली बार किसी जागरूक क्षत्रिय ने पलटकर ब्राह्मण को शाप दिया
था.
निमि’ जनक के पूर्व-पुरुष हैं.ये ही विदेह हैं,ये ही मिथिल हैं,ये ही हमारी पलकों पर निमिष बनकर निवास करते हैं.निमि इक्ष्वाकु के पुत्र थे.हिमालय के पद प्रांत को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया और सिंहासन-संस्कृति के स्थान पर कृषि-संस्कृति का पोषण किया.
एक बार राज्य में पानी के अभाव में जब अकाल की स्थिति
उत्पन्न हुई,तब
बादलों को आकर्षित करने के लिए निमि ने एक महायज्ञ का प्रस्ताव कुलगुरु वसिष्ठ के
सामने रखा.सृष्टिकर्त्ता के मानस पुत्र वसिष्ठ उस समय इंद्र द्वारा आयोजित यज्ञ
में ऋत्विक बनकर जा रहे थे,अतः
उन्होंने निमि के संकल्प की अवहेलना की और कुछ दिन प्रतीक्षा करने को कहा.
निमि को समय-बोध था.वे जाग्रत थे,दीर्घसूत्री नहीं थे.वे जानते थे कि जीवन में समय का मूल्य कितना है.उनका यज्ञ धरती-पुत्रों की अभिलाषा की पूर्ति के लिए था,जबकि वसिष्ठ देवताओं को संतुष्ट करना चाहते थे.ब्राह्मणत्व जब विशिष्ट बनता है,तब वह धरती की बजाय स्वर्ग को महत्त्व देने लगता है.निमि ने सोचा कि वर्षा के बिना पूरा जनपद स्वाहा हो जाएगा.फिर देवताओं का दिन मानव के छह महीने के बराबर होता है.गुरु वसिष्ठ का कुछ दिनों में लौटने का अर्थ वे जानते थे.उत्तम संकल्प विलंबित नहीं होना चाहिए,ऐसा निश्चय करके उन्होंने तत्काल यज्ञ का ऋत्विक बदल दिया और महर्षि गौतम को पुरोहित बनाकर यज्ञ प्रारंभ कर दिया.
वह जन-यज्ञ था,कृषि-यज्ञ था, और था उसमें मिट्टी का कण-कण
निमंत्रित.लेकिन जैसे ही पूर्णाहुति की लपट ऊपर उठी,लोगों ने देखा कि वसिष्ठ
आकाशमार्ग से लौट रहे हैं.वे संभवतः मानव की आहुतियों की गरमी को सह नहीं पाये
थे.उन्होंने आते ही निमि को श्राप दिया,”अपने को विद्वान् एवं
दूरदर्शी मानने वाले निमि ! तू मेरी जरा भी प्रतीक्षा नहीं कर सका? गौतम को ऋत्विक बनाकर मेरा
अपमान करने वाले कुल-कलंकी निमि ! तेरा यहीं देह्पात हो जाए.”
और उसी क्षण मानव-जाति की सबसे अनोखी और अभूतपूर्व घटना घटी.पहली दफा एक निरपराध एवं कर्तव्यनिष्ठ क्षत्रिय ने सर ऊँचा करके दंभी एवं क्रोधी ऋषि के शाप का विरोध किया और धीर-गंभीर स्वर में कहा,”गुरुदेव ! क्रोध एवं लोभवश आपने तथ्य को न समझ,मुझे शाप दिया है.अभी तक किसी क्षत्रिय ने पलटकर ब्राह्मण को शाप नहीं दिया,पर आज मैं दे रहा हूं.ब्राह्मण आकाश की दुहाई देकर शाप देते रहे हैं,मैं धरती की धूलि हाथ में लेकर शाप देता हूं कि आपकी इसी क्षण मृत्यु हो जाए.”
और उसी क्षण मानव-जाति की सबसे अनोखी और अभूतपूर्व घटना घटी.पहली दफा एक निरपराध एवं कर्तव्यनिष्ठ क्षत्रिय ने सर ऊँचा करके दंभी एवं क्रोधी ऋषि के शाप का विरोध किया और धीर-गंभीर स्वर में कहा,”गुरुदेव ! क्रोध एवं लोभवश आपने तथ्य को न समझ,मुझे शाप दिया है.अभी तक किसी क्षत्रिय ने पलटकर ब्राह्मण को शाप नहीं दिया,पर आज मैं दे रहा हूं.ब्राह्मण आकाश की दुहाई देकर शाप देते रहे हैं,मैं धरती की धूलि हाथ में लेकर शाप देता हूं कि आपकी इसी क्षण मृत्यु हो जाए.”
श्रीमद्भागवत में व्यास कहते हैं.......
निमि प्रतिददौ शापं गुरवेऽ धर्मवर्तिने |
मानव जीवन के इतिहास में संभवतः यह पहला अवसर था,जब किसी जागरूक क्षत्रिय ने पलटकर अपराधी ऋषि को शाप दिया हो.
यह दो शापों की टकराहट
थी.यह ब्राह्म-तेज और क्षात्र-तेज का विध्वंसात्मक मंत्रयुद्ध था.वसिष्ठ का शाप
लगा और निमि की देह उखड़े महावृक्ष की तरह मुठ्ठियों में धरती की धूल थामे धराशायी
हो गयी.निमि का भी शाप लगा और वसिष्ठ के आसपास मौत का कुहासा घिरने लगा.वे महायोगी
थे,अतः
तत्काल समाधि में बैठ गये और मन-प्राणों को ब्रह्मरंध्र में केंद्रित करने के
प्रयत्न में देह छोड़कर देवलोक पहुँच गये.
वहां कर्म,संस्कार एवं अभीप्सा के परिणामस्वरूप मित्र और वरुण के सम्मिलित तेजोमय अंश तथा उर्वशी के गर्भ से पुनः वसिष्ठ के रूप में अवतीर्ण हुए,लेकिन ये अभिनव वसिष्ठ एकदम बदले हुए थे.कहाँ तो क्रोधी,दंभी एवं यशलोलुप ज्वालामुखी की तरह जीने वाले पुराने वशिष्ठ और कहाँ ये शांत,मौन,सुस्थिर,प्रसन्न एवं शिष्ट वसिष्ठ,जो मर्यादापुरुषोत्तम राम के गुरु बने.
वसिष्ठ ने अपने पूर्व-जीवन से बहुत कुछ सीखा.फिर उन्होंने कभी क्रोध नहीं किया.निमि के शाप का यही औचित्य है कि गुरु वसिष्ठ गुरुतम विशिष्ट बन गये.
उधर निमि की देह यज्ञ-वेदिका के सिरहाने पड़ी थी.महर्षि गौतम
बड़े दुखी थे कि –“हाय, मैं कैसा ऋत्विक बना,कैसा पुरोहित बना ! अब मेरे
जीवन की सम्पूर्ण कामना का प्रतिफल यही हो सकता है कि निमि पुनः जीवित हो जाए.”
उन्होंने उसी क्षण सभी देवताओं का आह्वान किया.इंद्र ने
प्रणाम किया और पुछा.”ऋषिवर
हमें क्या आज्ञा है?” गौतम
ने भर्राए कंठ से कहा .”मेरे
यजमान को समय-बोध और मनुष्यत्व के पोषण की कितनी कठोर सजा मिली है.लेकिन निमि अब
दूसरा शरीर ग्रहण नहीं करेगा.वह इसी शरीर में पुनः जीवित होगा.आप उसे पुनर्जीवित
करें.”
मृत-शरीर को पुनः जीवित करने का यह मानवीय आग्रह इतिहास की
दुर्लभ घटना है.इधर सूक्ष्म देहधारी निमि ने देह ग्रहण करने से साफ़ इनकार कर दिया.”मुझे न स्थूल देह चहिए न
सूक्ष्म देह.मैं तो जीवमात्र के पलकों पर निवास करना चाहता हूं,ताकि अहर्निशि उनके
हास्य-रूदन के साथ जुड़ सकूं.मैं महाकाल के सर पर निमिष बनकर बैठना चाहता
हूं.मिट्टी के पुतले को क्षण-बोध की शिक्षा देता रहूँगा.मैं पलकों पर धनुष की तरह
पड़ा रहूँगा.जब कोई जनक सिंहासन से उतारकर खेत में हल चलाएगा और धरती की पुत्री
सीता को प्राप्त करेगा,जब
सीता की जयमाला ऊपर उठेगी,तब मैं
शिवधनुष की तरह खंड-खंड हो जाऊँगा.
और यही हुआ.निमि नेत्र-पलकों ने उन्मीलन का अधिदेवता बन गया.पर उसके निर्जीव शरीर का क्या किया जाए? गौतम ने सब ऋषियों से कहा,”हमारे रहते निमि का वंश समाप्त हो,यह गौरव की बात नहीं है.हम इस शरीर को मथकर नया निमि पैदा कर लेंगे.यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है कि विभिन्न दिव्यौषधियों के लेप एवं विधि-विधान से शरीर मंथन के बाद इसी देह से नया पुरुष उत्पन्न किया जा सकता है.आदिकाल में पहले भी वेन को मथकर पृथु पैदा किया गया था.”
मृत शरीर से मंथन क्रिया द्वारा पुनः जीवित करने की घटना आज
के संदर्भ में कितनी प्रेरणादायक एवं
रोचक हो सकती है.गौतम के नेतृत्व में मंथन-कार्य शुरू हुआ.समुद्र-मंथन का-सा दृश्य
था.अंत में निमि की देह से बाल अरूण की तरह परम तेजस्वी युवक उत्पन्न हुआ.इसका नाम
‘मिथिल’ पड़ा क्योंकि यह मंथन से
उत्पन्न हुआ था.इसे ‘जनक’ भी कहा जाता है,क्योंकि इसने खुद में से खुद
को जन्म दिया था.यह ‘विदेह’ नाम से भी प्रसिद्ध हुआ,क्योंकि देह-संयोग के बिना ही
इसने जन्म लिया था.
मिथिला को इसने राजधानी बनाया.फिर तो,निमि-वंश के सभी राजाओं की
उपाधि ‘जनक’ और ‘विदेह’ हो गयी.निमि की इक्कीसवीं
पीढ़ी में सौरध्वज जनक हुए.जिन्होंने सीट(हल) चलाकर धरती की पुत्री-जानकी को
प्राप्त किया था.
यह एक क्षत्रिय की कथा नहीं बल्कि एक जागरूक मनुष्य की कथा
है,जिसने
ब्राह्मणत्व एवं देवत्व को ललकारा और स्वयं में से स्वयं को पैदा करके सर्जना के
नए आयाम खोले.
Keywords खोजशब्द :- Story of Nimi,Mithila,Shrimad bhagvat,Bhagvat Puran,Devi Puran
Keywords खोजशब्द :- Story of Nimi,Mithila,Shrimad bhagvat,Bhagvat Puran,Devi Puran
Bahut sundar chitran kiya hai apne is uttam katha ka
ReplyDeleteसुंदर कथा.
ReplyDeleteबहुत गहन अर्थ समेटे हैं यह कथा - ऋषित्व ने जब-जब जग की कल्याण कामना के स्थान पर अपना अहं तुष्ट किया तब-तब ऐसे ही अनिष्टों का कारण बना .पांडु को शाप शकुन्तला को शाप,आदि बहुत से उदाहरण हैं . स्वयं को सर्व श्रेष्ठ मान कर मानवीय भावनाओं को तुच्छ समझ कर केवल अपना महत्व स्थापित करने का स्वभाव उनकी सारी उपलब्धियों का खोखलापन उजागर कर देता है.इन जानकारियों के लिए भी आभार स्वीकारें राजीव जी !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. प्रतिभा जी. आभार.
Deleteसुंदर और रोचक
ReplyDeleteकाफी रोचक वृत्तांत पहली बार पढ़ रही हूँ, आभार आपका !
ReplyDeleteरोचक और गहरा अर्थ लिए ... कथाएं उस समाज के प्रतिरूप होती हैं और अगर ये तथ्य सच है तो ये कहानी कई वैज्ञानिक नियम और सामाजिक दशा का वर्णन सा करती प्रतीत होती है ...
ReplyDeleteकई बातों से पर्दा उठाती है कहानी जीके बारे में आम टूर से पता नहीं चल पाता ...
बहुत रोचक और सारगर्भित कथा...अद्भुत प्रस्तुतीकरण...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पौराणिक कथा
ReplyDeleteबहुत ही रोचक कथा।
ReplyDeletebahut badhiya....yah maine pahli baar padha , bahut rochk .....
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कथा---जैसे चित्र सामने चल रहे हों.
सादर धन्यवाद ! आ. शास्त्री जी. आभार.
ReplyDeleteवहां कर्म,संस्कार एवं अभीप्सा के परिणामस्वरूप मित्र और वरुण के सम्मिलित तेजोमय अंश तथा उर्वशी के गर्भ से पुनः वसिष्ठ के रूप में अवतीर्ण हुए,लेकिन ये अभिनव वसिष्ठ एकदम बदले हुए थे.कहाँ तो क्रोधी,दंभी एवं यशलोलुप ज्वालामुखी की तरह जीने वाले पुराने वशिष्ठ और कहाँ ये शांत,मौन,सुस्थिर,प्रसन्न एवं शिष्ट वसिष्ठ,जो मर्यादापुरुषोत्तम राम के गुरु बने.
ReplyDeleteएक नयी कहानी और नयी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से मिलती है आदरणीय श्री राजीव जी ! और ये कथा भी पहली बार ही मिल रही है की एक क्षत्रिय ने एक ब्राह्मण को शाप दिया ! ज्ञानवर्धक
राजा निमि और गुरु वसिष्ठ से जुड़ी रोचक कथा प्रस्तुत करने के लिए आप आभार के पात्र है । सादर ।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ :- मंगल ग्रह पर जीवन के संकेत मिली मीथेन गैस
अगस्त माह के महत्वपूर्ण दिवस और तिथियाँ
बहुत बढ़िया ऐतिहासिक जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteBehad umda rochak katha.
ReplyDelete