Monday, March 9, 2015

जाते हुए वसंत का बौरायापन


वसंत तो हर साल इतराता,इठलाता हुआ आता है.पर कभी जाते हुए वसंत का बौरायापन देखा है.हालांकि पिछले कई साल से पेड़,पौधों की जड़ों की बात तो दूर,ठीक-ठाक उनके शरीर पर भी पानी नहीं बरसा है,फिर भी यह जा रहा है.हर साल की अपेक्षा इस साल इसके ठाठ कुछ कम ही रहे हैं.शायद सूखे के कारण ऐसा हो.

वैसे वसंत बड़ा मनमौजी होता है.यह सबके पास नहीं आता,सब पर नहीं आता.कई पेड़ तो वसंत में फूलों से लदे-फदे दिखते हैं और कई टुकुर-टुकुर ताकते रहते हैं.वसंत सर्र से आता है और फर्र से चला जाता है.कई पेड़ तो आने की खबर मात्र से ही इतराने लगते हैं.गली,घाट,चौराहों पर पत्ते उतार कर ठूंठ बनकर प्रतीक्षा करते रहते हैं.उनकी शाखें और टहनियां लचकदार हो जाती हैं.

वसंत उन्हें देखकर मुस्कुराता है और उनकी ओर एक-एक मुठ्ठी फूल फेंक देता है.आम सरीखे कुछ वृक्ष अवश्य हैं,जो पत्तों सहित स्वाभिमान पूर्वक अमराई में डटे रहते हैं.वे अपनी हरीतिमा में और सघन हो उठते हैं.वसंत उनकी फुनगियों से फूटकर स्वयं गौरव पाता है.अधिकांश पेड़ों की तरफ वसंत ताकता भी नहीं.इतना अवश्य है कि वसंत आने के पूर्व पतझड़ इनके पीले पत्तों को तोड़ डालता है.

वसंत का आगमन कौन अपने जीवन में नहीं चाहता.सारी वनस्पति सहज भाव से मुस्कुराना चाहती है.फूलों की कलगी धरकर पेड़-पौधे नाचना चाहते हैं.चीथड़ों को उतारकर वासंती-वसन पहनना चाहते हैं.आखों में कलियों का जागरण चाहते हैं.साँसों में सुमनों की महक चाहते हैं.शिशिर की जकड़न से निजात पाकर,अंग-अंग में वसंत की ताजगी चाहते हैं.गति में ठुमक और वाणी में खनक चाहते हैं. दूसरे मौसमों की सूद दर सूद चली आती मार से छुटकारा चाहते हैं.पत्थरों की संधि में फंसी अपनी जड़ों में गीलापन चाहते हैं.लाल मिटटी वाली धरती पर सदानीरा पहाड़ी नदी चाहते हैं.अपनी वानस्पतिक गंध से वसंत को मौलिक सहजता देना चाहते हैं.

परंतु दुनियां में सबको मनचाही स्थिति नहीं मिलती.कोई चांदी का चम्मच लेकर पैदा होता है तो कोई दोनों हाथ खोले खड़ा रहता है,रात-दिन हड्डी-पसली एक करता रहता है फिर भी मुठ्ठी भर वसंत नहीं मिलता.कुछ पौधे ख़ास जरूर होते हैं जो क्यारी के गुलाब बनकर फलते-फूलते रहते हैं.बाकी तो सब पलाश हैं.ज्यादातर वृक्षों को सख्त पत्थर,सूखी मिट्टी,नुकीले कंकड़ और रेतीली ढलान वाली जमीन ही मिलती है.वर्षा उन्हें नहला जाती हैं और गर्मी सुखा जाती है.

कुछ पेड़ वसंत के पहले ही कट जाते हैं.लोहे के कल-पुर्जों पर लदे-फ़दे गायब हो जाते हैं.कुछ लोगों के अलावों में जलकर उनकी जकड़न दूर करते हैं,उनका जाड़ा भगाते हैं.यह बात अलग है कि अपने ही खलिहानों या दलानों के के पेड़ काटने के लिए वन विभाग के कर्मचारियों की जेब गर्म करनी पड़ती है,तभी आप उस लकड़ी से गर्मी महसूस कर सकते हैं.

कुछ अलाव की आंच में आँखों की कोर के टूटते तटों को देखते हैं और धू-धूकर जलते हैं.खुद जलकर लोगों के भीतर की आग सोख लेते हैं.कुछ अपनी आग से दूसरों के भीतर भी आग पैदा कर देते हैं.कुछ को जीवन में वसंत आने के पहले ही दूसरी जगह बसाने,रोपने के आश्वासन के साथ उजाड़ दिया जाता है.कभी बांध बहाना लेकर,कभी उद्योग लगाने का तर्क देकर आदिम वनों की बस्तियों के भूगोल से निकाल दिया जाता है.ये पुराने अरण्य वसंत को बिना देखे ही चुपचाप मिट जाते हैं.

कई बार तो इतनी तेज आंधियां चलती हैं कि छोटे-छोटे नये किशोर पौधे उखड़ जाते हैं.डालियाँ टूट जाती हैं,तने ठूंठ हो जाते हैं.कोयल,मोर पपीहा तोता कटे पंख,घायल शरीर लिए सकते में आ जाते हैं.दूर- दूर तक बूढ़े झाड़-झंखाड़ दिखते हैं.तब फिर वसंत मुआयना करने निकलता है.बूढ़ा वृक्ष हाथ जोड़े खड़ा रहता है.वसंत उन अनुभवी बूढ़े वृक्षों को आस बंधाता है,हम तुम्हारी नयी फसल उगाएंगे.नयी फसल उगाने और ठूंठ बने शेष पेड़ों की देखरेख का जिम्मा ‘ग्रीष्म’ को सौंप कर वसंत ओझल हो जाता है.विवश किंतु पानीदार आंखें उड़ती धूल देखती रह जाती हैं.

वसंत की एक खासियत और भी है.यह कभी-कभी सहयोगी नायक बनकर प्रकृति के रंगमंच पर आता है.यह उसकी बड़ी खतरनाक किस्म की भूमिका होती है.कामदेव इसे सखा के रूप में पाकर धनी हो जाता है.वसंत कामदेव को कुसुम बाण सप्लाई करता है और मदन है कि उसका दुरूपयोग करता रहता है. आम्र,अशोक,अरविंद,नीलोत्पल और नवमल्लिका के पंचबाणों से लैस होकर ऐंठा-ऐंठा घूमता रहता है.विवश,परित्यक्त और विरही जनों को व्यग्र करने में ही अपनी क्षमताओं की इतिश्री समझता है.

‘कुमारसंभवम्’ में इंद्र से कामदेव बड़े गुमान से कहता है :

तव प्रसादात् कुसुमायुधो पि, सहायमेकं मधुमेव लब्ध्या
कुयौ हरस्यापि पिनाकपाणेः धैर्यच्युतिं के ममःधन्विनो न्ये |

(आपकी कृपा से कुसुमायुच्छ होने पर भी एक मात्र वसंत को पाकर पिनाक पाणि शिव के भी धैर्य को च्युत कर दूं)

शिव की छेड़खानी वसंत को लेकर कामदेव कर रहा है.परिणामतः कामदेव को भस्म होना पड़ा.कामदेव के अंत के साथ ही वसंत की छवि भी धूमिल हो गयी.कहने को तो वसंत के आगमन की प्रतीक्षा में हर छोटा-बड़ा पौधा लालयित रहता है.दस महीनों में दूसरी ऋतुओं का बखेड़ा इसलिए सहते हैं कि वसंत के आने पर कुछ दिन तो फूल खिलेंगे.साँसों की गंध,सुगंध बनेगी.मौन टूटेगा,आखों के तट सूखेंगे,उषा अंगड़ाई लेगी और निराला की चिर-परिचित आकाश में उंची उठी.......

‘रूखी री यह डाल,वसन वासंती लेगी’

पर जाते-जाते वसंत के बौराएपन का क्या कहिए कि जाते हुए भी शरीर में सिहरन और ठिठुरन दिये जा रहा है.

Keywords खोजशब्द : Farewell to Spring,Madness of spring

21 comments:

  1. वैसे वसंत बड़ा मनमौजी होता है.यह सबके पास नहीं आता,सब पर नहीं आता.कई पेड़ तो वसंत में फूलों से लदे-फदे दिखते हैं और कई टुकुर-टुकुर ताकते रहते हैं.वसंत सर्र से आता है और फर्र से चला जाता है.कई पेड़ तो आने की खबर मात्र से ही इतराने लगते हैं.गली,घाट,चौराहों पर पत्ते उतार कर ठूंठ बनकर प्रतीक्षा करते रहते हैं.उनकी शाखें और टहनियां लचकदार हो जाती हैं.bahut khoob ...

    ReplyDelete
  2. जाते हुए बसंत पर बहुत सुंदर प्रस्तुति...जड़ता में ऊष्मा का संचार है वसंत, प्रतीक है उमंग और उल्लास का...

    ReplyDelete
  3. जाता हुआ वसंत भी की सपने दे जाता है ... एक उम्मीद की झड जाने के बाद नए मौसम की ...

    ReplyDelete
  4. सशक्त बढ़िया आलेख, बधाई

    ReplyDelete

  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

    ReplyDelete
  6. जाते हुए वसंत को सलाम। मुझे मालूम है कि तुम मुझे भूल न जाओगे। तुम जरूर फिर लौट के आओगे।

    ReplyDelete
  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-03-2015) को "सपना अधूरा ही रह जायेगा ?" {चर्चा अंक-1913} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  8. बहकते वसंत को खूब पकड़ा है आपने इस ललित निबंध में !

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर लेख, मन तो चाहता है कि प्रकृति के रंग ठहर जाए
    लेकिन कहाँ ऐसा संभव है, बसंत के बाद पतझड़ निश्चित है !

    ReplyDelete
  10. आपको बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि हिन्दी चिट्ठाजगत में चिट्ठा फीड्स एग्रीगेटर की शुरुआत आज से हुई है। जिसमें आपके ब्लॉग और चिट्ठे को भी फीड किया गया है। सादर … धन्यवाद।।

    ReplyDelete
  11. तभी तो वसंत को ऋतुराज कहा जाता है।
    जय हो वसंत।

    ReplyDelete
  12. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  13. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  14. जाते हुए वसंत को तो आपने अपने निबंध में बाँध लिया है ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  15. वसंत की एक खासियत और भी है.यह कभी-कभी सहयोगी नायक बनकर प्रकृति के रंगमंच पर आता है.यह उसकी बड़ी खतरनाक किस्म की भूमिका होती है.कामदेव इसे सखा के रूप में पाकर धनी हो जाता है.वसंत कामदेव को कुसुम बाण सप्लाई करता है और मदन है कि उसका दुरूपयोग करता रहता है. आम्र,अशोक,अरविंद,नीलोत्पल और नवमल्लिका के पंचबाणों से लैस होकर ऐंठा-ऐंठा घूमता रहता है.विवश,परित्यक्त और विरही जनों को व्यग्र करने में ही अपनी क्षमताओं की इतिश्री समझता है.तभी तो वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete