दुनियां में जिधर देखें,रस ही रस मिलता है.पृथ्वी के तीन चौथाई भाग में रस भरा हुआ है,शेष भाग में भी रस की कमी नहीं.सब तरफ रस की सरसता देखी जा सकती है.जल तो रस है ही काव्य के दस रसों के अलावा और भी अनेक रस होते हैं.आयुर्वेद में भी हेमगर्भ रस,अभृक रस,महामृत्युंजय रस आदि होते हैं.
रस लिया जाता है और दिया भी
जाता है.हम सब लोग अच्छे काम,अच्छी बात में रस लेते हैं.विद्यापति की नायिका कहती
है “कतमुख मोरि,अधर रस लेल”. भौरा
अपनी जान की बाजी लगाकर भी रस पीता है.रसपान की तीव्रता ऐसी होती ही है –
“रसमति मालती
पुनि पुनि देखि
पिबए वाह मधु जीव
उपेरिव”
नायक,नायिका के मिलन रस में
विद्यापति कल्पना कर लिखते हैं कि - नायक,नायिका के संयोग श्रृंगार में ‘औंधा चांद कमल का रसपान कर रहा है’.
रस आता है और रस जाता भी
है.हम सब बातचीत में अक्सर कहते हैं कि उस व्यक्ति को बड़ा रस आता है या उसका रस
चला गया.रस लगता है और जब किसी बात का रस लग जाता है तो बड़ा रस आता है.रस के बीच
विघ्न आने पर रिस उत्पन्न होता है और रस चला जाता है.नयन तो रस से भरे ही रहते
हैं,अतः कहा जाता है – “नैन सुधा रस पीजै.”
भौंरे रस के बड़े लोभी होते
हैं और फूलों का रस चूसते हैं,रस पीते हैं,रस चुराते हैं.रस बरसता भी है.रस निकलता
है और निकाला भी जाता है.कहते हैं कि शरद पूर्णिमा को रस बरसता है,इसलिए खीर से
भरे बर्तन को खुले आकाश में रखा जाता है ताकि रस खीर में समा जाए. फलों का रस निकलता
है और निकाला भी जाता है.आदमी का भी रस निकल जाता है,किसी का रस निचुड़ जाता है.किसी
की आँखों में रस बरसता है,किसी की बातों में रस बरसता है.
सावन और फागुन में रस बरसता
है.कवियों ने इस लिए कहा है......
रस बरसाता सावन आया,रस रंगराता फागुन आया
रस रिसता है और रस झरता
है.बातों से और आँखों से रस झरता है.रस से भरे फल,रस से भरे यौवन,रसीले
नेत्र,रसीले अधर रसीले नृत्य,रसीली अदाएं,रसीले छैल अच्छे लगते हैं.रस की फाग होती
है तो आदमी विभोर हो जाता है......
“रंग सों माचि
रही रस फाग
पूरी गलियां
त्यों गुलाल उलीच में“
रस से अनेक शब्द बने हैं जो
बड़े सरस हैं.रस से रसवंती बना है,जो नदी के लिए प्रयुक्त होता है.रस में परिपूर्ण
होने से नारियों को भी रसवंती कहते हैं.रस से रसनिधि शब्द बना है जो समुद्र के लिए प्रयुक्त होता
है –
“रसनिधि तरंगीन विराजति उगचि”.
“रसनिधि तरंगीन विराजति उगचि”.
रस रंग भी एक शब्द है.रस
रंग में बड़ा आनंद आता है.खाद्य सामग्री को रसद कहते हैं.’रसभरा’ एक पौधा होता है
जो ईख के खेत में होता है....
“बीच उखारी रस
भरा,रस काहे न होय”
जो रस से परिपूर्ण हो उसे
भी रसभरा या रसभरी कहते हैं.रस से भरी होने
पर जीभ को रसना कहते हैं.’रस हाल’ का अर्थ प्रसन्न या सुखी होना है.रस से ही रसीन बना है जिसका अर्थ है आभा या चमक.रसाल आम को
कहते हैं.रसौ या रसा का अर्थ पृथ्वी है.रसा से ही रसातल शब्द बना है.रसराज श्रृंगार रस को कहा जाता है.रसधार जल की धारा को कहा गया है.
गौरस का अर्थ दूध,दही आदि के लिए प्रयुक्त होता है.रामरस नमक कहलाता है जिसमे बिना सब रस नीरस लगते
हैं.रस से भींगे,रस में पगे,रससिक्त या रसपगे कहलाते हैं.’पनरस’ लाल रंग का एक
कपड़ा होता है जिससे विवाह में गठबंधन होता है.रसगुल्ले और रसमलाई में रस भरा होता
है जिसे खाने में रस आता है.रस से ‘रसज्ञ’ बना है जिसका अर्थ है ज्ञाता.
रसविभोर होकर प्राचीन काल
में देवतागण सोमरस पिया करते थे.गोपियाँ कृष्ण के रस में रसमग्न हो जाया करती थीं.रसिक
जन ही रस का सच्चा आनंद ले पाते हैं.रस का संचार होता है और रस की अनुभूति होती
है.
मंगल अवसरों पर रस से भरे
कलश सजाए जाते हैं.स्नेह भी एक रस है.दीपक की ज्योति में भी रस होता है.कभी किसी
काम में रस आता है तो कभी रस फीका होता है.अनुराग को भी रस कहते हैं.युवतियों के
नेत्रों में श्रृंगार रस या प्रेम रस भरा होता है.....
रस श्रृंगार
मज्जन किए,कंचन भंजन दैन
अंजन रंजन हूं
बिना,खंजन गंजन नैन
रस से अनेक चीजें बनती हैं
जिनका रसिकजन आनंद उठाते हैं.आम से आमरस,गन्ने के रस से रसखीर या रसिया,फलों के रस
से अनेक द्रव्य बनते हैं.अंगूर के रस से द्राक्षासव,फूलों के रस से इत्र बनता
है.फूलों का रस और रंग रंगाई के काम आता है.जिसमें रस हो उसे सरस और बिना रस की
चीज को नीरस कहा जाता है.समीर रस से वृक्ष आच्छादित होते हैं.....
“पी पीकर समीर रस
तट पर एक वृक्ष है झूल रहा”
रस सरसता भी है और रस में
भी रस सरसता है.........
“हंसी करत में रस गए,रस में रस सरसाय”
जीवन में जब तक रस है तभी
तक उल्लास,उमंग है.रसीले बोल बोलिए,रसीली मुस्कान बिखेरिये,रसीली चितवन से बचिए और
जीवन की रस धारा में डूबते उतराते रहिए.
Very well writte.
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सादर आभार.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा विवरण दिया है..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन.....
जीवन में जब तक रस है तभी तक उल्लास,उमंग है.रसीले बोल बोलिए,रसीली मुस्कान बिखेरिये,रसीली चितवन से बचिए और जीवन की रस धारा में डूबते उतराते रहिए.
Good Article !
ReplyDeleteबहुत खूब बड़ी रसीली प्रस्तुति ..
ReplyDeleteरसों से कवियों का तो साश्वत सम्बन्ध रहा है।
ReplyDeleteसारगर्भित लेख।
आदरणीय राजीव जी! सुन्दर रसपूर्ण ब्लॉग पढ़वाने के लिए के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteधरती की गोद
नौ रसों में जीवन निहित है ,ये सरस आलेख अति सुन्दर है
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteवैसे तो नो रस की चर्चा होता ई पर अगर जीवन में एक भी रस आ जाये तो बहुत है पूरी उम्र के लिए .... रोचक और रस से भरपूर आलेख ...
ReplyDeleteसुंदर और रोचक
ReplyDeleteati sundar ....ras hai to jiwan me madhurta hai ...
ReplyDeleteरस ही रस है ..........बहुत बढ़िया लेख!
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