Saturday, December 31, 2016

भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना

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हम हिन्दुस्तानियों को पुरानी चीजों से खासा लगाव होता है.इन चीजों या उपकरणों पर मरम्मत में इसकी वास्तविक कीमत से ज्यादा खर्च कर बैठते हैं लेकिन इसे सहेज कर रखने की आदत होती है.बदलते वक्त के साथ तकनीक का पुराना होते जाना आम बात है लेकिन कभी पुराने तकनीक को दिल से जुदा करने का गम भी सालता रहता है.

संगीत प्रेमियों में ऑडियो कैसेट सहेज कर रखना आम बात होती थी.लेकिन सी.डी,डी.वी.डी ,एम.पी.3 उसके बाद ब्लू रे डिस्क जैसी नई तकनीकों के आने से ऑडियो कैसेटों की मांग नहीं के बराबर रह गई है.कभी कितने जतन से इन कैसेटों को सहेज कर रखा था.आज अचानक ही एक कार्टून में बंद पड़े कैसेटों पर नजर गई तो पुरानी स्मृतियाँ ताजा हो आईं.

गजल के कई संग्रह को तो काफी खोजबीन के बाद ख़रीदा गया था,जगजीत-चित्रा सिंह,भूपेन्द्र-मिताली मुखर्जी,राजकुमार-इन्द्राणी रिजवी,राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता,चंदन दास,पंकज उधास,मखमली आवाज के मालिक तलत अजीज़,अहमद हुसैन-मो.हुसैन साहब के गजल की बात ही कुछ और थी.भूपेन्द्र-मिताली के 'राहों पे नजर रखना,मंजिल का पता रखना,आ जाए कोई शायद,दरवाजा खुला रखना', कई-कई बार सुना था.

अहमद हुसैन-मो.हुसैन साहब को पहली बार रेडियो पर सुना था.तब भागलपुर रेडियो स्टेशन से शाम के सवा सात बजे गजलों का कार्यक्रम आता था जिसमें हुसैन बंधु का गजल खूब बजता था.हुसैन साहब आज भी मुझे प्रिय हैं.खासकर उनका यह गजल - 'ऐ सनम तुझसे में जब दूर चला जाऊँगा,'सावन के सुहाने मौसम में' या फिर 'मैं हवा हूँ,कहाँ वतन मेरा' मेरे प्रिय गजल रहे हैं.

राजेन्द्र मेहता-नीना मेहता के गजल भी खूब लोकप्रिय रहे हैं.खासकर 'एक प्यारा सा गाँव,जिसमें पीपल की छांव' आज भी बड़े शौक से सुने जाते रहे हैं.मनहर का गजल पहली बार कई साल पहले एक सुबह धनबाद के बस स्टैंड पर बज रहे कैसेट के एक दुकान में सुनकर ख़रीदा था.हाल में जब उस बस स्टैंड पर जाना हुआ तो पाया वहां पर अब एक मोबाईल का दुकान खुल गया है.तक़रीबन कैसेट के लगभग सभी दुकानों में नए बोर्ड लग गए हैं.अब काफी कोजने पर ही कैसेट का दुकान दिखाई देता है.नई तकनीक का यह साइड इफ़ेक्ट लगता है.

वैसे काफी पहले से ही मोबाईल,लैपटॉप,डेस्कटॉप आदि ने संगीत उपकरणों की जगह लेनी शुरू कर दी थी,रही सही कसर इंटरनेट पर मौजूद गीतों,गजलों के  भरपूर संग्रह ने पूरी कर दी. आने वाले समय में तकनीक का और विस्तार हो सकता है लेकिन संगीत प्रेमियों के लिए संगीत का खजाना तब भी बदस्तूर मौजूद रहेगा.

आज जब इन कैसेटों पर नजर जाती है तो लगता है ये कह रही हों.........

भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना 
जमाना ख़राब है दगा नहीं देना 

Sunday, October 23, 2016

रामकथा के लोक प्रसंग

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रामकथा की लोकप्रियता का आलम यह है कि भारत सहित अन्य देशों में विभिन्न टी.वी. चैनलों पर इसका प्रसारण वर्षान्त तक होता रहता है.इसे उपन्यास के शक्ल में ढालने वालों में नरेंद्र कोहली से लेकर आज के दौर के लेखकों अमीश त्रिपाठी,अशोक बैंकर,देवदत्त पटनायक एवं अन्य लेखक भी सक्रिय रहे हैं.

रामकथा के विभिन्न रूप विभिन्न देशों और विभिन्न भाषओं  के साहित्यों में पाए जाते हैं.प्रायः सभी कथाओं का मूल समान होते हुए भी अनेक घटनाओं का वर्णन भिन्न-भिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न कथाओं में मिलता है.मूल कथा से जुड़े होते हुए भी इनकी भिन्नता को दो भिन्न भाषाओँ में स्पष्टतया देखा जा सकता है.

सीता वनवास से जुड़े एक प्रसंग में थाई रामायण के अनुसार – रावण को मारने के बाद सीता को लेकर राम-लक्ष्मण कुछ वानरों के साथ अयोध्या लौट आए.लंका का राज्य विभीषण को दे दिया.राम आनंदपूर्वक अयोध्या का राज्य चलाने  लगे.उन्हीं दिनों पातळ में एक राक्षसी रहती थी.रावण के समूल वंश नाश से उसे बहुत दुःख था.उसने सोचा कि सीता के कारण उसके बंधु-बांधव मारे गए,इसलिए वह अवश्य बदला लेगी.

यह सोचकर उसने सुंदर स्त्री का रूप बनाया और अयोध्या आ पहुंची.वह राजमहल में सीता के पास आई.   गिड़गिड़ाकर बोली,’महारानी जी,मैं इस संसार में अकेली हूँ.मेरे दिन बड़ी कठिनाई से बीतते हैं.आप मुझे राजमहल में रख लें तो बड़ी कृपा होगी.मैं आपकी खूब सेवा करूंगी.’कहते-कहते आँखों में आंसू भर लायी.

सीता का ह्रदय ठहरा दया का सागर,उन्होंने उसे राजमहल में रख लिया.अब वह राक्षसी हर समय सीता के साथ रहती.उसने ऐसा मायाजाल  फैलाया कि सीता अन्य दसियों की अपेक्षा उस पर अधिक विश्वास करने लगी.

एक दिन उस राक्षसी ने सीता से कहा,’महारानी जी मैंने रावण के बारे में बहुत सी बातें सुनी है.कहते हैं कि उसकी सूरत बहुत भयानक थी,उसके दस सिर थे.आपने तो उसे कई बार देखा होगा,कैसा था वह राक्षस.सीता ने उसे रावण के बारे में बताया तो वह राक्षसी बोली,’महारानी जी उसका चित्र तो बनाइए.मैं देखना चाहती हूँ कि वह कैसा दिखता था.’

उसी राम वहां आए.राक्षसी तुरंत सीता द्वारा बनाए चित्र में प्रवेश कर गयी.अब सीता समझी कि वह दासी कोई राक्षसी है.उन्होंने रावण का चित्र मिटाने की कोशिश की,पर नहीं मिटा पायी.सीता घबरा गईं,उन्होंने सोचा,अगर राम ने रावण का चित्र देखा तो अनर्थ हो जाएगा.मुझ पर संदेह करेंगे.उन्होंने झट उसे सिंहासन के नीचे रक्ज दिया और बाहर चली गयीं.

राम आकर सिंहासन पर बैठ गए.एकाएक उन्हें जोर की गर्मी महसूस हुई.सिंहासन से आग की लपटें निकलने लगीं.यह राक्षसी की माया थी.राम ने उठ कर देखा तो रावण का चित्र दिखाई दे गया.वह क्रोध में बोल पड़े,’कौन है जिसने रावण का चित्र बनाया? मैं उसे कठोर दंड दूंगा.’

सभी दासियाँ चुप रहीं.सीता का नाम कौन लेती.सीता समझ गयीं कि इस तरह तो सबको दंड मिलेगा.उन्होंने अंदर आकर प्रणाम किया फिर सारी बात कह सुनाई.सुनकर राम बोले,’तो तुम्हारे मन में अब भी रावण बसा हुआ है.मैं तुम्हें एक पल भी अयोध्या में नहीं रहने दूंगा.उन्होंने लक्ष्मण को बुलाया और कहा.’लक्ष्मण,सीता को अभी जंगल में ले जाओ और तलवार से इन्हें मार दो,यह मेरी आज्ञा है.भाई की आज्ञा सुन लक्ष्मण भी घबरा गए पर भाई की आज्ञा जो ठहरी.

वह सीताजी को रथ में बिठाकर वन की और चल दिए.उनकी आँखों से आंसू गिर रहे थे.सीताजी ने कहा,’लक्ष्मण तुम्हारा कोई दोष नहीं.मेरा भी कोई कुसूर नहीं,एक राक्षसी के कारण ही ऐसा हुआ.तुम अपने कर्तव्यों का पालन करो.’

जंगल में पहुंचकर लक्ष्मण ने तलवार उठायी तो उनका हाथ कांप गया.तलवार छूट कर झाड़ियों में जा गिरी.उनका ह्रदय रो रहा था.उन्होंने आँखें बंद कर फिर तलवार चलायी तो वह फूलों का हार बनकर सीता के गले में गिर गयी.लक्ष्मण बेहोश होकर गिर पड़े.सीता उन्हें होश में लायी.उन्हें जीवित देख लक्ष्मण को आश्चर्य हुआ.सीता ने गले से फूलों की माला निकालकर लक्ष्मण के सामने रख दी.लक्ष्मण सीता को जंगल में छोड़कर अयोध्या चले गए.

इसी से मिलता जुलता एक प्रसंग बुंदेलखंड के अनाम,निरक्षर कवियों द्वारा गढ़ी गयी राम कथा में मिलती है.इन लोक कवियों ने राम-कथा को नए-नए आयाम दिए हैं.उनकी भाषा भले ही परिष्कृत न हो लेकिन कल्पना की उडान अद्भुत और मन को छूने वाले हैं.बुंदेली ग्रामीण ललनाओं के मुख से राम-कथा रुपी गीतों के झरने फूटते हैं तो मन आनंद के सागर में गोते लगाने लगता  है.

Sunday, October 16, 2016

फिर वही कथा कहो

लोककथाएं,कहानियां,जनश्रुतियां सदियों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती रही हैं.इनमें कई आख्यान और उपख्यान तात्कालिक दौर में जोड़े जाते रहे लेकिन वे हमारी सांकृतिक विरासत का हिस्सा भी बनी रहीं.बचपन में हम सबने दादी-नानी से असंख्य कथाओं को सुना होगा और फिर से वही कथाएं भी दुहरायी गयी होंगी,बालमन पर अमिट छाप छोड़ जाने के लिए.

लेकिन बदलते वक्त के साथ कहानियों के माध्यम और प्रकार भी बदल गए हैं.अब बच्चों के पास वक्त नहीं होता इन कहानियों के लिए.स्कूली बस्ते का भारी बोझ एवं मन बहलाने के अन्य साधनों की भरमार हो गयी है.इसलिए बाल-मन पर दूसरे माध्यमों का प्रभाव पड़ना लाजिमी है.

कई संस्कृतियों में मोर को प्रमुख रूप से निरूपित किया गया है, अनेक प्रतिष्ठानों में इसे आईकन के रूप में प्रयोग किया गया है, 1963 में इसे भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया.भारत में अक्सर इसे परंपराओं, मंदिर में चित्रित कला, पुराण, काव्य, लोक संगीत में जगह मिली है.कई हिंदू देवता पक्षी के साथ जुड़े हैं,  

कृष्ण के सिर पर मोर का पंख बंधा रहता है ,जबकि यह शिव का सहयोगी पक्षी है जिसे गॉड ऑफ वॉर कार्तिकेय (स्कंद या मुरुगन के रूप में) भी जाने जाते हैं.बौद्ध दर्शन में, मोर ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. मोर पंख का प्रयोग कई रस्मों और अलंकरण में किया जाता है. 

मोर रूपांकनों का प्रयोग वस्त्रों, सिक्कों, पुराने और भारतीय मंदिर की वास्तुकला और अन्य उपयोगी तथा कला के कई आधुनिक मदों में व्यापक रूप से होता है.ग्रीक पौराणिक कथाओं में मोर का जिक्र मूल अर्गुस और जूनो की कहानियों में है.सामान्यतः कुर्द धर्म येज़ीदी के मेलेक टॉस के मुख्य आंकड़े में मोर को सबसे अधिक रूप से दिखाया गया है.मोर रूपांकनों को अमेरिकी एनबीसी टेलीविजन नेटवर्क और श्रीलंका के एयरलाइंस में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है.

भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के संबंध में भी अनेक दंत कथाएं प्रचलित हैं.एक मालवी लोक कथा के अनुसार-एक गाँव में एक किसान रहता था.उसका विवाह दूसरे गाँव में एक बड़े घर की बेटी से हो गया.वह गरीब किसान अपनी पत्नी को लाने कई बार उसके मायके गया लेकिन हर बार उसके मायके वालों ने कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया.इससे उसके गाँव वाले हमेशा उसे ताना देते रहे.

लोगों के तानों से तंग आकर एक बार फिर वह पत्नी को लिवाने उसके गाँव पहुंचा.घबराहट में, राह किनारे देवी के मंदिर में जा पहुंचा.मैया से विनती करते-करते उसके मुंह से निकल गया,’मातेश्वरी,यदि  मेरी घरवाली मेरे साथ आएगी तो मैं अपना सिर तुझे चढ़ा दूंगा.’

गरीब किसान हिचकिचाता हुआ ससुराल पहुंचा,वहां उसकी खूब आवभगत हुई.दो दिन के सत्कार के बाद उन्होंने उसकी घरवाली उसके साथ विदा कर दी.छम-छम करती बैलगाड़ी में अपनी दीदी और जीजाजी को बिठाकर साला ले चला.गाँव के बाहर आते ही देवी का मंदिर आया,तो गरीब किसान को अपनी प्रतिज्ञा याद आ गयी.उसने बैलगाड़ी को रुकवाते हुए कहा-‘मैं मातेश्वरी के दर्शन कर अभी आता हूँ,तुम दोनों यहीं ठहरो.’

मातेश्वरी के सामने पहुंचकर गरीब किसान ने अपने वचन के अनुसार छुरी से अपना गला काट लिया.धड़ और सिर अलग-अलग जा गिरे.खून की धार बह चली.इधर गरीब किसान का साला और उसकी घरवाली राह देखते-देखते परेशान हो गए.किसान के साले ने दीदी से कहा – ‘मैं देखकर आता हूँ.’

मंदिर में आकर उसने अपने जीजाजी का सिर और धड़ अलग-अलग पड़ा देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया.उसने सोचा कि यही बात वह अपनी दीदी से कहेगा तो विश्वास नहीं करेगी और सोचेगी भैया ने ही उसके घरवाले की हत्या कर दी या करा दी है.छोड़ने का बहाना करके वह साथ में इसलिए आया था.यही सोचते हुए उसे लगा कि अब वह बहन को कौन सा मुंह दिखाए,इससे तो मर जाना ही अच्छा है.

किसान के साले ने इसी संताप में छुरी उठाकर अपनी गरदन  दी.उसका भी सिर और धड़ अलग-अलग जा गिरा और खून की धार बह चली.उधर किसान की घरवाली बैलगाड़ी में बैठे-बैठे घबरा गयी.इन दोनों को तलाशने वह मंदिर में आई तो वहां का दृश्य देखकर उसने अपना सर पीत लिया.विलाप करते-करते उसे ख्याल आया कि वह लोगों को कैसे मुंह दिखाएगी.लोग उसके चरित्र पर दोषारोपण करेंगे और कहेंगे  की वह इसी लिए पति के साथ नहीं आई.आज आना पड़ा तो पति और भाई की हत्या करवा दी.

इसी शर्म के मारे उसने पास पड़ी छुरी उठायी और अपनी गरदन काटने को उद्धत हुई.तभी देवी ने उसे टोका,नहीं....नहीं,ऐसा मत कर.किसान की घरवाली ने गिड़गिड़ाते हुए कहा-‘मातेश्वरी इसके सिवा रास्ता ही क्या बचा है मेरे लिए?

मातेश्वरी ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा – ‘घबरा मत. मैं तेरे घरवाले और भाई को फिर से जीवित कर दूंगी,तू इनके धड़ से सिर मिला दे.’प्रसन्नता से बावली हुई उस नारी ने हड़बड़ाहट में घरवाले के धड़ पर भाई का सिर और भाई के धड़ पर घरवाले का सिर लगा दिया.मातेश्वरी ने दोनों को जीवित कर दिया.दोनों अपने-अपने कपड़े झाड़ते हुए उठ खड़े हुए.

उस स्त्री के लिए अब यह समस्या उठ खड़ी हुई कि इन दोनों में से किसे घरवाला माने और किसे भाई माने?यह समस्या जब उससे नहीं सुलझी तो माता के सामने रोयी-गिड़गिड़ायी.माता ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इसे ब्रह्माजी ही सुलझा सकते हैं.

वह भागी-भागी ब्रह्माजी के पास गयी और अपना दुखड़ा कह सुनाया.ब्रह्माजी ने इस समस्या पर विचार करके इन दोनों को मोर-मोरनी बना दिया.इस रूप में पति-पत्नी के धर्म का निर्वाह शरीर स्पर्श के बिना ही होने लगा.मोर नाचने लगे और मोरनी उन अश्रुकणों को चुग-चुगकर  संतान को जन्म देने लगी.



Wednesday, October 12, 2016

रावण कभी नहीं मरता

भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से बुराइयों पर अच्छाइयों के विजय के प्रतीकस्वरूप,विजयादशमी के दिन रावण के दहन की प्रथा रही है जो अब तक चली आ रही है.लंका का अधिपति राक्षसराज रावण,धनपति कुबेर का भाई,संस्कृत और वेदों का महापंडित,परम शिवभक्त और शिव-तांडव-स्रोत का रचयिता भी था.वह अपार वैभव ही नहीं अपार शक्ति का भी स्वामी था.

वाल्मीकि के अनुसार,रावण की मृत्यु के उपरांत ,स्वयं श्री राम ने विभीषण से कहा,”राक्षसराज रावण समर में असमर्थ होकर नहीं मरा.इसने प्रचंड पराक्रम किया है.इसे मृत्यु का कोई भय नहीं था.यह देवता रणभूमि में धराशायी हुआ है.

रावण की मृत्यु के बाद उससे सदा तिरस्कृत विभीषण ने श्रीराम से शोक संतप्त स्वरों में कहा,’भगवन,देवताओं से अपराजित रावण आज आपसे युद्ध करके रणभूमि में वैसे ही शांत पड़ा है जैसे समुद्र अपनी तट भूमि पर पहुंचकर शांत हो जाता है.वह महाबली ,अग्निहोत्री,महातपस्वी,वेदांतवेत्ता और यज्ञ कार्यों में श्रेष्ठ था.

नि:संदेह रावण महातपस्वी भी था.पौराणिक आख्यान हमें बताते हैं कि उसने तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया था. लेकिन उसके मन में जन्मा विकार उसके सर्वनाश का कारण इस कदर बना कि अपनी मृत्यु के उपरांत भी वह उपहास का पात्र बना हुआ है जिसे हम विजयादशमी के दिन उसके दहन के रूप में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं.

रावण के तमाम गुणों पर उसकी एक भूल,अहं की अनुचित पराकाष्ठा, उसके दुर्गुण को ही सामने लाते हैं.कहा जाता है कि वह घोर व्यक्तिवादी और अहं का शिकार था.कैलास को शीर्ष पर उठा लेने के बाद उसके मन में सर्वशक्तिमान हो जाने का अहं जागा था.शिव अपने प्रिय भक्त में मन में आये इस विकार को जान गए थे.उन्होंने अपने अंगूठे के दबाव से रावण को उसकी असमर्थता का भान करा दिया था.एलोरा के कैलास मंदिर में यह प्रसंग शिल्पियों ने पत्थरों पर भी उकेरा है.

रावण को लेकर अनेक कथाएँ हैं.उसके नाम को लेकर भी कई कथाएँ हैं.जैसे रावण का अर्थ है - सारे संसार को रुलाने वाला,जन्म के समय गर्दभ स्वर में रोने वाला या बहुत अधिक चिल्लाने वाला.एक कथा के अनुसार,जब रावण सारी सीमाओं का अतिक्रमण कर गया तो मानवों और देवों ने ईश्वर से उसे दंडित करने की प्रार्थना की.यह प्रार्थना विष्णु तक भी पहुंची.उन्होंने घोषणा की कि अहंकारवश रावण ने जिस मानवीय शक्ति की उपेक्षा की है,वह उसी शक्ति के द्वारा नष्ट भी होगा और इस घोषणा को सिद्ध करने के लिए विष्णु ने राम का अवतार लिया.

अहंकार को मनुष्य के उत्थान की सबसे बड़ी बाधा माना गया है.संतजन कहते हैं कि ज्यों-ज्यों अहंकार मिटता है,व्यक्ति का चित्त निर्मल होने लगता है.व्यक्ति ईश्वर के निकट पहुँचता है.दूसरों से अधिक श्रेष्ठ,शक्तिमान अधिक सम्माननीय बनने की लालसा सबके मन में होती है.रावण ने भी स्वयं को सर्व शक्तिमान समझ लिया था. जो उसके अंत का कारण बना.

मानवीय विकार मनुष्यों की स्वभावगत प्रवृति है लेकिन शुभ संस्कारों के कारण हम इनसे जूझते भी रहते हैं.आदि काल से सद् और असद् प्रवृत्तियों के बीच द्वंद चलता रहता है.रावण इन्हीं असद् और आसुरी प्रवित्तियों का प्रतीक है.
जब तक मनुष्य के मन में सद् और असद् के बीच द्वंद चलता रहेगा तब तक प्रतीकात्मक रूप में रावण भी जीवित रहेगा,वह कभी नहीं मरेगा.यह भी सत्य है कि जब तक रावण नहीं मरता,तब तक राम का आदर्श भी धुंधला नहीं हो सकता.


Wednesday, September 28, 2016

मुंगिया के सपने


वह मुझसे तक़रीबन पांच साल पहले मिली थी,पटना के डाक बंगला चौराहे पर.मैं शाम के समय आयकर चौराहा से सीधे डाक बंगला चौराहा होते हुए परिवार के एक सदस्य को स्टेशन पहुँचाने जा रहा था.जैसे ही मेरी कार ट्रैफिक जाम में डाक बंगला चौराहे पर रुकी,एक छोटी सी लड़की सजावटी फूलों का गुच्छा लिए खिड़की के पास आ गई.बाबू,एक गुच्छा फूल ले लो न,पचीस रूपये का है,गाड़ी में भी लगा सकते हो.न चाहते भी एक गुच्छा ले लिया.आगे बड़ी दूर तक गाड़ियों की कतार दिख रही थी,जाहिर था,ज्यादा देर रूकना था.

वक्त बिताने के गरज से मैंने उसके बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास किया.उसने बताया कि उसका नाम मुंगिया है,उसकी उम्र दस साल है और वह दो साल से यहाँ पर सजावटी फूलों का गुलदस्ता बेचती है.उसकी एक छोटी बहन भी यही काम करती है जो आसपास ही है.पटना के आसपास ही किसी गाँव से आती है.कितना कमा लेती हो एक दिन में,इतना पूछते ही बोल पड़ी अस्सी से सौ रूपये तक.एक फूल बेचने पर पांच रूपये मिल जाते हैं.

दरअसल,तारामंडल से आगे बढ़ते ही शॉपिंग कम्पलेक्स की कतार शुरू हो जाती है.मौर्या लोक और हरनिवास कम्पलेक्स के सामने काफी चौड़ी फुटपाथ है और इस पर तरह-तरह के सजावटी सामान, खिलौने,फूलों के गुलदस्ते बेचने वालों की भरमार रहती है.यहीं से ये बच्चे-बच्चियां फूल लेकर ट्रैफिक पर रूकने वाले गाड़ियों में सामान बेचते हैं.

अच्छा,तो स्कूल जाने का मन नहीं करता,मैंने पूछा.मन करता है न स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल जाने का. लेकिन माई जाने नहीं देती, कहती है, काम नहीं करेगी तो घर का खर्च कैसे चलेगा.बाप अपाहिज है और दिनभर खाट पर पड़ा रहता है,मां कुछ घरों में चौका बर्तन कर घर का खर्च चलाती है.फिर पढ़ाई में खर्चा भी होता है.लेकिन सरकारी स्कूल में तो फ़ीस नहीं लगता,इस पर वह चुप हो गई.स्कूल के सपने उसकी आँखों में तैरने लगे थे.जिन हाथों में किताबें होनी थीं उन हाथों में असमय ही घर चलाने की जिम्मेदारी डाल दी गयी थी.

आज न जाने कितने ऐसे असंख्य बच्चे हैं जो कच्ची उम्र में ही जिंदगी की गाड़ी खींचने को विवश कर दिए जाते हैं.चाहे उसका कारण गरीबी,बेरोजगारी या अशिक्षा ही क्यों न हो इसकी मार तो नाजुक हाथों पर ही पड़ती है.

इस वाकये के बाद एक दो बार पटना गया लेकिन मुंगिया से फिर भेंट नहीं हुई.एक साल के बाद फिर उसी चौराहे पर वह मिली.दोंनों हाथों में भरी चूड़ियाँ,मांग में सिंदूर देख समझ गया कि उसका विवाह हो गया.ग्यारह साल की उम्र में विवाह होने पर भी वह काफी खुश दिखी.उसने बताया कि दो महीने पहले ही विवाह हुआ है.शायद विवाह का अर्थ भी उसे पता नहीं होगा.माँ-बाप ने अपने कंधों से जिम्मेवारी उतार फेंकी थी और उसे जिंदगी की झंझावातों से लड़ने के लिए छोड़ दिया.

आज इस तरह की कितनी ही मुंगिया हैं जो कच्ची उम्र में ही स्कूली बस्ते की जगह कंधों पर गृहस्थी का बोझ लादे फिर रही हैं?

Tuesday, May 31, 2016

न उम्र की सीमा हो



कुछ किताबें ऐसी होती हैं जो किसी भी उम्र में पढ़ी जा सकती हैं.इन पुस्तकों की रोचकता और विषय-वस्तु उम्र का मोहताज नहीं होती.जे.के.रॉलिंग की हैरी पॉटर श्रृंखला की पुस्तकें भी ऐसी ही हैं. रहस्य,रोमांच,इंद्रजाल का रोचक प्रयोग पाठकों को ऐसी दुनियां में ले जाते हैं जहाँ से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता.

बाल-सुलभ उत्सुकता,स्कूल का माहौल,प्रतिद्वंदिता,हाउस कप जीतने की ललक ये सब किसी आम स्कूल जैसा माहौल उत्पन्न करते हैं.हालांकि हॉग्वर्ट्स के जिस स्कूल की परिकल्पना रॉलिंग ने की है वह शायद ही इंग्लैंड में कहीं मौजूद हो.यह भी कहा जाता रहा है कि रॉलिंग ने संभवतः स्कॉटलैंड के किसी स्कूल का खाका खींचा है.

रॉलिंग के हैरी पॉटर श्रृंखला की सभी सात भागों की पुस्तक हिंदी में भी उपलब्ध हैं और इसने हिंदी भाषी पाठकों का भी एक बड़ा वर्ग तैयार किया है. हैरी पॉटर श्रृंखला के अलावा रॉलिंग ने कुछ और पुस्तकें भी लिखी हैं लेकिन वे उतनी चर्चित नहीं रही.

हैरी पॉटर श्रृंखला के लिखने के उद्देश्य के बारे में रॉलिंग ने एक साक्षात्कार में बताया था कि इन पुस्तकों के लिखने की एक वजह ‘मृत्यु के प्रति भय’ को भी समाप्त करना था.जैसा कि इस श्रृंखला की पहली ही किताब में प्रमुख पात्र हॉग्वर्ट्स स्कूल के हेडमास्टर एल्बस डंबलडोर कहते हैं,’एक अच्छी तरह संतुलित मस्तिष्क वाले आदमी के लिए मौत अगला महान रोमांचक अभियान होती है.’

हैरी पॉटर श्रृंखला की अंतिम चार पुस्तकें छह सौ से आठ सौ पृष्ठों की हैं लेकिन ये कहीं से भी बोझिल नहीं लगती.इन पुस्तकों में दोस्ती की मिसाल,राजनीतिक हालात, राजनीतिक उठापटक,सत्ता परिवर्तन तो हैं ही, साथ ही कुछ वास्तविक चरित्र भी लिए गए हैं जैसे कि फ़्रांस के मशहूर कीमियागर निकोलस फ्लामेल का चरित्र.सभी सात पुस्तकें हैरी पॉटर के हॉग्वर्ट्स स्कूल में बिताये सात वर्षों की दास्तान और उनके तथा दोस्तों के रोचक कारनामे हैं.

लेकिन रॉलिंग ने इस श्रृंखला को सात भागों में ही क्यों समाप्त कर दिया? क्या वे इस बात से आशंकित थीं कि इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे कम हो रही है? हालांकिदुनियां भर में इस श्रृंखला की पुस्तकों की लोकप्रियता और सभी आयु वर्ग के लोगों पर चढ़ा उनका जादू देखकर तो ऐसा नहीं लगता.

यह भी एक रोचक विषय है कि यदि रॉलिंग हैरी पॉटर श्रृंखला को लिखना जारी रखतीं तो अभी क्या लिख रही होतीं.शायद हैरी पॉटर और जिनी तथा उनके दोस्तों के बच्चों के कारनामों पर लिख रही होतीं.इस श्रृंखला की पुस्तकों में कुछ भारतीय चरित्र भी लिए गए हैं जैसे,पाटिल बहनें,मायूस मीना,प्रोफ़ेसर बावरे नैन मूडी.

हैरी पॉटर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस श्रृंखला की अंतिम पुस्तक ‘हैरी पॉटर और मौत के तोहफे’(Harry Potter and the Deathly Hallows)के प्रकाशित होने के छह-सात साल बाद अब रॉलिंग हैरी पौटर पर आधारित नाटकों की एक श्रृंखला 'Harry Potter and the Cursed Child' के साथ ब्रिटेन सहित पूरी दुनियां में आयोजित करने जा रही हैं.



Sunday, January 24, 2016

लेखक से बड़ा होता किरदार

अगाथा क्रिस्टी 
हरक्यूल पाईरो,शरलक होम्स,जेम्स बांड और हैरी पॉटर में क्या कोई समानता है?बिलकुल समानता है.ये सभी अगाथा क्रिस्टी,ऑर्थर कानन डायल,इयान फ्लेमिंग और जे.के.रोलिंग द्वारा गढ़े गए वे किरदार हैं जो अपार लोकप्रियता प्राप्त कर लोकप्रियता में इसके सृजक से भी आगे निकल गए हैं.
क्या कभी इन लेखकों ने कल्पना की होगी कि ये किरदार सर्वकालिक महान किरदार बन जाएंगे? 


आर्थर कानन डायल
अगाथा क्रिस्टी के मर्डर मिस्ट्री पर आधारित उपन्यास दुनियां के सभी भाषाओँ में अनुवादित हुए हैं और आज भी पाठकों में उत्सुकता जगाते हैं.शरलक होम्स ने अपराध की गुत्थी को सुलझाने के नए-नए आयाम बनाये. दुनियां भर के विभिन्न टी.वी चैनलों पर आज भी शरलक होम्स के धारावाहिक चल रहे हैं.


इयान फ्लेमिंग 
इयान फ्लेमिंग द्वारा सृजित जेम्स बांड का किरदार इस कदर लोकप्रिय हो गया है कि भारत सहित विभिन देशों ने इसके अवतार सृजित कर लिए.पिछले महीने दुनियां भर रिलीजजेम्स बांड सीरीज की फिल्म स्पेक्टर ने साबित किया कि आज भी बांड का किरदार उतना ही लोकप्रिय है,जितना पहले था..हॉलीवुड में बनी फंतासी फिल्मों का अलग ही क्रेज रहता है.जेम्स बांड के किरदार निभाने के कारण कई अभिनेताओं ने असीमलोकप्रियता प्राप्त की.रॉजर मूर,सीन कोनरी,टिमोथी डाल्टन,पियर्स ब्रासनन, डेनियल क्रेग जैसे अभिनेताओं के कारण जेम्स बांड सीरिज ने कई कीर्तिमान स्थापित किए.
जे.के.रॉलिंग
जे. के. रोलिंग द्वारा सृजित हैरी पॉटर सीरीज की किताबों के साथ इस पर बनी फ़िल्में भी उतनी ही लोकप्रिय हुईं.हैरी पॉटर का किरदार न केवल बच्चों बल्कि सभी आयु वर्गों में सराहा गया. हालांकि इस सीरीज की अंतिम किताब ‘हैरी पॉटर और मौत के तोहफे’(Harry Potter and the deathly halllows) रॉलिंग ने कई साल पहले लिखी और इस पर अंतिम फिल्म दो भागों में कई साल पहले रिलीज हुई लेकिन आज भी इसके किरदार की लोकप्रियता का आलम यह है कि कुछ महीने पहले इस सीरीज की फिल्मों में हर्माइनी ग्रेंजर का किरदार निभाने वाली ब्रिटिश अभिनेत्री एम्मा वाटसन ने जब अपना 34वां जन्मदिन मनाया तो जे.के. रॉलिंग समेत तमाम प्रशंसकों ने उसके किरदार हर्माइनी के नाम से ही शुभकामना संदेश भेजे.

हाल ही में हैरी पॉटर सीरीज की फिल्मों में सीवियरस स्नेप का किरदार निभाने वाले ब्रिटिश अभिनेता एलन रिकमैन का कैंसर से निधन हुआ तो रॉलिंग समेत तमाम प्रशंसकों ने उनकी अदाकारी को शिद्दत से याद किया.गौरतलब है कि लोगों के जेहन में स्नेप का किरदार ही था जिसने उन्हें लोकप्रिय बनाया.

कई लेखकों,रचनाकारों के पात्रों को इस कदर लोकप्रियता मिली है कि लगता है कि वे इसके सृजक से भी ज्यादा चर्चित हो गए हैं.

Thursday, January 14, 2016

उपनाम का क्रेज


कवियों और साहित्यकारों में उपनाम रखने की एक लंबी परंपरा रही है.लेकिन ख़त्म होती परंपराओं के साथ इसका भी नाम जुड़ गया है.कभी हम इन कवियों और साहित्कारों को उपनाम से ही जानते थे.आम बोलचाल में भी उपनाम का ही प्रयोग होता था.

कई लोगों का विचार है कि कवियों द्वारा उपनाम रखने की परंपरा फ़ारसी और उर्दू कवियों की देन है.उन्हीं की देखादेखी हिंदी कवियों ने भी उपनाम रखने की परंपरा कायम की.हालांकि उपनाम रखने की परंपरा यहाँ प्राचीन संस्कृत कवियों में भी रही है.संस्कृत के अनेक कवि अपने उपनामों से ही अपनी पहचान बनाए हुए हैं.उपनामों की परंपरा वैदिक ऋषियों तक जाती है.आदिकवि वाल्मीकि के ही उपनाम हैं.शुनः शेप,शुनः पुच्छ,लोपामुद्रा उपनाम ही प्रतीत होते हैं.

हिंदी के प्रायः सभी कवि अपने उपनामों से ही प्रसिद्ध हैं.कहा तो यह भी जाता है कि इस परंपरा में विदेशी प्रभाव के साथ ही साहित्यिक चोरी भी इसका कारण रही है.अपनी कविता के बीच में अपना नाम दे देने से चोरी की आशंका कम हो जाती थी.

प्राचीन कवि उपनाम रखते थे तो अपने नाम के पूर्वांश या उत्तरांश को अपना उपनाम बनाते थे.बाद में कुछ कवियों ने अपने स्वभाव,नगर या गांव के नाम के आधार पर उपनामों का चुनाव किया.इससे अलग एक धारा के लोगों ने सुर्खियां बटोरने के लिए ‘लुच्चेश’,’धूर्त’,’बेहया’ जैसे उपनामों को अपनाया.पुराने हिंदी कवियों के कुछ उपनाम राजाओं द्वारा उपाधि के रूप में दिए गये हैं.इनमें महाकवि भूषण और भारतेंदु का नाम लिया जा सकता है.

संस्कृत के उपनाम वाले ऐसे अनेक कवि हैं जिनका वास्तविक नाम तक ज्ञात नहीं हैं. यथा,भिक्षाटन, निद्रादरिद्र,राक्षस,घटखर्पर,धाराकदंब,अश्वघोष,कपोलकवि,मूर्खकवि,मयूर,कपोत,कापालिक जैसे अनगिनत नाम हैं.

उपनामधारी संस्कृत कवियित्रियों में ‘विकटनितंबा,अवंतीसुंदरी,कुलटा,रजक सरस्वती, जघन-चपला जैसे अनेक उपनाम शामिल है.इनमें से अनेक ऐसे हैं जिनकी शायद ही कोई रचना पुस्तक के रूप में उपलब्ध हो.अधिकतर की छिटपुट रचना या संग्रह के रूप में संकलित हैं.जिनकी रचनाएं उपलब्ध हैं उनमें, अश्वघोष,घटखर्पर और अवन्तीसुंदरी शामिल हैं.

अज्ञात कवियों के साथ ही कालिदास,माघ,भारवि,भवभूति जैसे प्रख्यात कवियों के नाम भी उपनाम ही माने जाते हैं. महाकवि कालिदास का वास्तविक नाम कुछ लोगों के अनुसार मातृगुप्त है.माघ और भारवि के संबंध में कहा जाता है कि आपसी प्रतिद्वंदिता के कारण इन्होंने अपने उपनाम रखे.’भा रवि’ का अर्थ  है – सूर्य की तेजस्विता.यह नामकरण देख माघ उपनाम वाले कवि ने घोषित किया कि वह भारवि हैं तो मैं ‘माघ’ हूं.माघ महीने में सूर्य की तेजी क्षीण हो जाती है.

अश्वघोष संस्कृत के प्रख्यात महाकवि हैं.इनकी बुद्धचरित प्रख्यात रचना है.अश्वघोष का अर्थ है-घोड़े की आवाज.कहा जाता है कि वैदिक ब्राह्मण कुल में जन्म लेने और वेद के विद्वान बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए थे.घूम-घूमकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे.इससे चिढ़कर वैदिक ब्राह्मणों ने मजाक उड़ाना शुरू कर दिया कि जिधर देखो घोड़े की तरह हिनहिनाता रहता है.

कुछ लोगों का कहना है कि इनके प्रवचन इतने रोचक,सरस और मधुर होते थे कि हिनहिनाता घोड़ा भी तन्मयता से इनका प्रवचन सुनने लगता था.इन्हीं मनोमुग्धकारी प्रवचनों के कारण इनका नाम अश्वघोष हो गया.यह नाम इतना प्रचलित हो गया कि कवि ने भी इसे स्वीकार कर लिया.

संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि रहे हैं ‘भर्तृमेंठ’.इसका अर्थ है – पीलवानों का स्वामी.पिकनिकर उपनाम वाले कवि भी उक्ति विशेष के कारण उपनाम अलंकरण के रूप में प्राप्त हो गया.वे बेचारे जंगलों में भटकते हुए बिलखते हुए घूम रहे थे कि यदि वसंत की आग में झुलसकर मेरी चिर विरहणी प्रिया प्राण त्याग दे तो उसके वध के पाप का भागी कौन होगा? उसकी युवावस्था,स्नेह या कामदेव? कवि के यह प्रश्न करते ही कोकिलों की झंकार सुनायी दी कि ‘तू-तू तू तू ही’.

पुराने कवि चाहे उर्दू,फारसी या हिंदी के हों उपनाम जरूर रखते थे.हिंदी के कवि प्रसाद,निराला एवं कुछ और कवियों ने इस परंपरा का पालन नहीं किया.आधुनिक कविताओं,छंदों में उपनाम की गुंजाईश ही नहीं होती.अब नए लेखक और कवि उपनाम नहीं रखते.


Wednesday, January 6, 2016

विषकन्या नहीं विषपुरुष भी


इन दिनों विभिन्न चैनलों पर विषकन्या की खूब चर्चा है.पिछले दिनों वायु सेना कर्मी रंजीत की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारी और उस पर विषकन्या के प्रभाव और धन के लोभ के आरोपों ने सरकार को इनसे सचेत रहने के लिए डोजियर जारी करने पर मजबूर कर दिया है.

विषकन्या का प्रयोग भारत जैसे देशों के लिए नया नहीं है.भारतीय विषकन्याएं पश्चिम दुनियां के लिए एक अजूबा रही हैं.सिकंदर महान की हत्या की चेष्टा भारतीयों ने एक विषकन्या द्वारा करनी चाही थी,यह इतिहास प्रमाणित घटना है.

बारहवीं शताब्दी में रचित ‘कथासरितसागर’ में विष-कन्या के अस्तिव का प्रमाण मिलता है.सातवीं सदी के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ में भी विषकन्या का वर्णन है कि परिशिष्ट पर्वन की विषकन्या नंद द्वारा पालित थी.इस विषकन्या का पर्वत्तक ने आलिंगन किया था जिससे उसके शरीर के उत्ताप से पर्वत्तक की यंत्रणा दायक मृत्यु हुई.’शुभवाहुउत्तरी कथा’ नामक संस्कृत ग्रंथ की राजकन्या कामसुंदरी भी एक विषकन्या थी.

शिशु कन्या को तिल-तिल कर विष चटा कर किस तरह विषकन्या के रूप में परिवर्तित किया जाता था,इसका विवरण किसी ग्रन्थ में नहीं पाया जाता.विषकन्याएं राजा और मंत्री की इच्छा को पूर्ण करने के लिए बनायी जाती थी.रूपवती नवयुवती को अस्त्र बना कर शत्रु को समाप्त करने के लिए विषकन्याओं का उपयोग किया जाता था.

शिशु उम्र से ही कुछ कन्याओं को विषैला पदार्थ का सेवन कराकर,धीरे-धीरे उसकी मात्रा बढ़ाकर,उन्हें बड़ा किया जाता था.अधिकतर की तो कुछ ही दिनों में मृत्यु हो जाती थी और जो एक दो बच जाती थीं उन्हें किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की हत्या करने के लिए सुरक्षित रखा जाता था.

रूपसी की दृष्टि पुरुष के मन को आकुल कर देती थी.संस्कृत साहित्य में ऐसी नायिकाओं का वर्णन है,जिसके दर्शन से मनुष्य उन्माद की अवस्था में पहुंच जाता था और तब विषाद से ग्रस्त हो मरणासन्न हो अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाता था.

यह भी सवाल उठता रहा है कि क्या विषपुरुष भी होते थे.पुरुष शासित समाज में सभी अधिकार पुरुषों के हाथ में भी रहे हैं.फिर भी कुछ विष पुरुष भी हुए हैं.

सोलहवीं शतब्दी में गुजरात का सुल्तान महमूद शाह भारत में एक विख्यात शासक हुआ है.विदेशी यात्रियों ने इस सुल्तान का जिक्र यात्रा वृत्तांतों में किया है.ऐसे ही एक यात्री भारथेमा ने लिखा है,महमूद के पिता ने कम उम्र से ही उसे विष खिलाना शुरू कर दिया था ताकि शत्रु उस पर विष का प्रयोग कर उस पर नुकसान न पहुंचा सके.वह विचित्र किस्म के विषों का सेवन करता था.वह पान चबा कर उसकी पीक किसी व्यक्ति के शरीर पर फेंक देता था तो उस व्यक्ति की मृत्यु सुनिश्चित ही हो जाती थी.

एक अन्य यात्री वारवोसा ने भी भी लिखा है कि सुल्तान महमूद के साथ रहने वाली युवती की मृत्यु निश्चित थी.महमूद अफीम खाता था.अफीम में गुण-दोष दोनों मौजूद होते हैं.जहां एक और यह विष है,वहीँ दूसरी ओर इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता रहा है.

सवाल यह भी उठता है कि क्या अफीम खाकर कोई व्यक्ति विष पुरुष या विष कन्या बन सकती है? अधिक अफीम खाने से मौत हो सकती है,लेकिन थोड़ा-थोड़ा खाकर इसे हजम किया जा सकता है.लेकिन इससे कोई विष पुरुष नहीं बन सकता.गुजरात का सुल्तान महमूद शाह जनसाधारण में विष-पुरुष के रूप में चर्चित रहा था.

इतिहास में दूसरे विष-पुरुष के रूप में नादिरशाह का नाम आता है.कहा जाता है कि उसके निःश्वास में ही विष था.विषकन्याओं की तरह विष-पुरुष इतने प्रसिद्ध नहीं हुए.क्योंकि,शत्रु की हत्या के लिए विष-पुरुष कारगर अस्त्र नहीं थे.