लोककथाएं,कहानियां,जनश्रुतियां सदियों से एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी तक हस्तांतरित होती रही हैं.इनमें कई आख्यान और उपख्यान तात्कालिक दौर में
जोड़े जाते रहे लेकिन वे हमारी सांकृतिक विरासत का हिस्सा भी बनी रहीं.बचपन में हम
सबने दादी-नानी से असंख्य कथाओं को सुना होगा और फिर से वही कथाएं भी दुहरायी
गयी होंगी,बालमन पर अमिट छाप छोड़ जाने के लिए.
लेकिन बदलते वक्त के साथ कहानियों के माध्यम और प्रकार भी
बदल गए हैं.अब बच्चों के पास वक्त नहीं होता इन कहानियों के लिए.स्कूली बस्ते का भारी बोझ एवं मन बहलाने के अन्य साधनों की भरमार हो गयी है.इसलिए बाल-मन पर दूसरे
माध्यमों का प्रभाव पड़ना लाजिमी है.
कई
संस्कृतियों में मोर को प्रमुख रूप से निरूपित किया गया है, अनेक प्रतिष्ठानों में इसे आईकन के रूप में प्रयोग किया गया है, 1963 में इसे भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया.भारत में अक्सर इसे परंपराओं, मंदिर में चित्रित कला, पुराण, काव्य, लोक संगीत में जगह मिली है.कई हिंदू देवता पक्षी के साथ जुड़े हैं,
कृष्ण के सिर पर मोर का पंख बंधा रहता है ,जबकि यह शिव का सहयोगी पक्षी
है जिसे गॉड ऑफ वॉर कार्तिकेय (स्कंद या मुरुगन के रूप में) भी जाने जाते हैं.बौद्ध दर्शन में, मोर ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है. मोर
पंख का प्रयोग कई रस्मों और अलंकरण में किया जाता है.
मोर रूपांकनों का प्रयोग वस्त्रों, सिक्कों, पुराने और भारतीय मंदिर की वास्तुकला और अन्य उपयोगी तथा कला के कई
आधुनिक मदों में व्यापक रूप से होता है.ग्रीक पौराणिक कथाओं में मोर का जिक्र मूल अर्गुस और जूनो की
कहानियों में है.सामान्यतः कुर्द धर्म येज़ीदी के मेलेक टॉस के मुख्य आंकड़े में मोर
को सबसे अधिक रूप से दिखाया गया है.मोर रूपांकनों को अमेरिकी एनबीसी टेलीविजन नेटवर्क और श्रीलंका के
एयरलाइंस में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है.
भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के संबंध में भी अनेक दंत
कथाएं प्रचलित हैं.एक मालवी लोक कथा के अनुसार-एक गाँव में एक किसान रहता था.उसका
विवाह दूसरे गाँव में एक बड़े घर की बेटी से हो गया.वह गरीब किसान अपनी पत्नी को
लाने कई बार उसके मायके गया लेकिन हर बार उसके मायके वालों ने कोई न कोई बहाना
बनाकर टाल दिया.इससे उसके गाँव वाले हमेशा उसे ताना देते रहे.
लोगों के तानों से तंग आकर एक बार फिर वह पत्नी को लिवाने उसके गाँव पहुंचा.घबराहट में, राह किनारे देवी के मंदिर में जा पहुंचा.मैया से
विनती करते-करते उसके मुंह से निकल गया,’मातेश्वरी,यदि मेरी घरवाली मेरे साथ आएगी तो मैं अपना सिर तुझे
चढ़ा दूंगा.’
गरीब किसान हिचकिचाता हुआ ससुराल पहुंचा,वहां उसकी खूब
आवभगत हुई.दो दिन के सत्कार के बाद उन्होंने उसकी घरवाली उसके साथ विदा कर
दी.छम-छम करती बैलगाड़ी में अपनी दीदी और जीजाजी को बिठाकर साला ले चला.गाँव के
बाहर आते ही देवी का मंदिर आया,तो गरीब किसान को अपनी प्रतिज्ञा याद आ गयी.उसने
बैलगाड़ी को रुकवाते हुए कहा-‘मैं मातेश्वरी के दर्शन कर अभी आता हूँ,तुम दोनों
यहीं ठहरो.’
मातेश्वरी के सामने पहुंचकर गरीब किसान ने अपने वचन के
अनुसार छुरी से अपना गला काट लिया.धड़ और सिर अलग-अलग जा गिरे.खून की धार बह चली.इधर
गरीब किसान का साला और उसकी घरवाली राह देखते-देखते परेशान हो गए.किसान के साले ने
दीदी से कहा – ‘मैं देखकर आता हूँ.’
मंदिर में आकर उसने अपने जीजाजी का सिर और धड़ अलग-अलग पड़ा
देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया.उसने सोचा कि यही बात वह अपनी दीदी से कहेगा तो
विश्वास नहीं करेगी और सोचेगी भैया ने ही उसके घरवाले की हत्या कर दी या करा दी
है.छोड़ने का बहाना करके वह साथ में इसलिए आया था.यही सोचते हुए उसे लगा कि अब वह
बहन को कौन सा मुंह दिखाए,इससे तो मर जाना ही अच्छा है.
किसान के साले ने इसी संताप में छुरी उठाकर अपनी गरदन दी.उसका भी सिर और धड़ अलग-अलग जा गिरा और खून की
धार बह चली.उधर किसान की घरवाली बैलगाड़ी में बैठे-बैठे घबरा गयी.इन दोनों को
तलाशने वह मंदिर में आई तो वहां का दृश्य देखकर उसने अपना सर पीत लिया.विलाप
करते-करते उसे ख्याल आया कि वह लोगों को कैसे मुंह दिखाएगी.लोग उसके चरित्र पर
दोषारोपण करेंगे और कहेंगे की वह इसी लिए
पति के साथ नहीं आई.आज आना पड़ा तो पति और भाई की हत्या करवा दी.
इसी शर्म के मारे उसने पास पड़ी छुरी उठायी और अपनी गरदन
काटने को उद्धत हुई.तभी देवी ने उसे टोका,नहीं....नहीं,ऐसा मत कर.किसान की घरवाली
ने गिड़गिड़ाते हुए कहा-‘मातेश्वरी इसके सिवा रास्ता ही क्या बचा है मेरे लिए?
मातेश्वरी ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा – ‘घबरा मत. मैं
तेरे घरवाले और भाई को फिर से जीवित कर दूंगी,तू इनके धड़ से सिर मिला दे.’प्रसन्नता
से बावली हुई उस नारी ने हड़बड़ाहट में घरवाले के धड़ पर भाई का सिर और भाई के धड़ पर
घरवाले का सिर लगा दिया.मातेश्वरी ने दोनों को जीवित कर दिया.दोनों अपने-अपने कपड़े
झाड़ते हुए उठ खड़े हुए.
उस स्त्री के लिए अब यह समस्या उठ खड़ी हुई कि इन दोनों में
से किसे घरवाला माने और किसे भाई माने?यह समस्या जब उससे नहीं सुलझी तो माता के
सामने रोयी-गिड़गिड़ायी.माता ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि इसे ब्रह्माजी
ही सुलझा सकते हैं.
वह भागी-भागी ब्रह्माजी के पास गयी और अपना दुखड़ा कह
सुनाया.ब्रह्माजी ने इस समस्या पर विचार करके इन दोनों को मोर-मोरनी बना दिया.इस
रूप में पति-पत्नी के धर्म का निर्वाह शरीर स्पर्श के बिना ही होने लगा.मोर नाचने
लगे और मोरनी उन अश्रुकणों को चुग-चुगकर
संतान को जन्म देने लगी.