प्राणायाम की मुद्रा में साधक |
विचरण करता लुंगगोमपा |
इस दुनियां में बहुत से रहस्य हैं.बहुत सी तांत्रिक साधनाएं हैं, जिनके बारे में हमें पता नहीं होता और जो सामान्य व्यक्तियों की
निगाहों से दूर ही रहती हैं.प्रसिद्द योगी परमहंस योगानंद ने अपनी बहुचर्चित और बेस्टसेलर आत्मकथा 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी' में भी इस तरह की रहस्यमयात्मक साधनाओं का जिक्र किया है.ऐसी ही एक रहस्यमयी तिब्बती साधना है - लुंगगोम.
लुंग का अर्थ फेफड़ा,हवा या महत्वपूर्ण
उर्जा, जो योगियों के अनुसार, प्राण वायु का प्रतीक है.गोम का अर्थ ध्यान या
केन्द्रित एकाग्रता है.अतएव ,लुंगगोमपा का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने केन्द्रित
ध्यान एवं प्राणायाम के द्वारा आध्यात्मिक उर्जा प्राप्त कर ली है.
लुंगगोम असामान्य गति की साधना है.यह तिब्बत की एक विशिष्ट साधना की वह प्रक्रिया है जो कि मूलतः प्राणायाम से संबंध रखती है.इस प्रक्रिया में प्राणों के विशिष्ट यौगिक अभ्यास के साथ ही मन की एकाग्रता का भी अभ्यास करना पड़ता है.तिब्बत के मध्ययुगीन साधकों में से अनेक साधक इस साधना में पूर्ण पारंगत थे और स्वल्पकाल में ही सैकड़ों मील की यात्रा पूरी कर लेते थे.
11वीं सदी के तिब्बती संत मिंलारेस्पा,उनके लामा गुरु एवं उनके शिष्य (त्रपा) घोड़े की गति से भी तीव्रतर गति से यात्रा कर लेते थे.मिंलारेस्पा ने स्वयं कहा है कि मैंने एक बार एक मास की यात्रा करने वाले गंतव्य की स्वल्प समय में ही यात्रा पूरी कर ली थी,जिसे इस सिद्धि के पूर्व,मुझे एक माह में पूरा करना पड़ा था.
अलेक्जेंड्रा डेविड नील नामक
पाश्चात्य साधिका ने ऐसे तीन लुंगगोमपा साधकों को यात्रा करते समय स्वयं देखा था.
साधना की इस पद्धति में असामान्य
गतिशीलता या त्वरित स्फूर्ति का अभ्यास नहीं करना पड़ता. परन्तु अपनी कायिक सहनशक्ति में
असामान्य वृद्धि का अभ्यास करना पड़ता है.इस साधना में पारंगत साधक एक क्षण के लिए
भी विश्राम ग्रहण किये बिना कई दिनों तक अहर्निश यात्रा करते रहते हैं.इस यौगिक
पद्धति का अभ्यास एवं प्रशिक्षण त्शांग प्रान्त के शालू गोम्पा में प्राचीन काल से
कराया जाता रहा है.इसके प्रशिक्षण के अन्य केंद्र भी तिब्बत में स्थित हैं.
महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम को परिभाषित करते हुए कहा है कि –‘आसन की सिद्धि के अनंतर श्वास – प्रश्वास की गति का अवच्छेद हो जाना ही प्राणायाम है'. इसके द्वारा प्रकाशवरण क्षीण होता है,और धारणाओं में मन की योग्यता अविर्भूत होती है.
‘घेरण्ड संहिता’ में कहा गया है कि प्राणायाम
से लाघव संप्राप्त होता है – ‘प्राणायामाल्लाघवं च’.
तिब्बती योग की इस पद्धति में प्राणायाम द्वारा इसी लाघव या लघिमा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है.योगशास्त्र में यह भी कहा गया है कि वायु एवं अग्नितत्व पर समुचित नियंत्रण प्राप्त कर लेने पर साधक में आकाशोड्डयन की क्षमता अविर्भूत होती है.
प्राणायाम द्वारा भूतत्व एवं जलतत्व की मात्रा को लगातार शरीर में से घटाया जाता जाता है और वायु तत्व को बढ़ाया जाता है.परिणाम यह होता है कि शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वह हवा में उड़ने लगता है और सैकड़ों मील प्रति घंटे की त्वरित गति से आकाश में यात्रा कर सकता है.
तिब्बती योग की इस पद्धति में प्राणायाम द्वारा इसी लाघव या लघिमा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है.योगशास्त्र में यह भी कहा गया है कि वायु एवं अग्नितत्व पर समुचित नियंत्रण प्राप्त कर लेने पर साधक में आकाशोड्डयन की क्षमता अविर्भूत होती है.
प्राणायाम द्वारा भूतत्व एवं जलतत्व की मात्रा को लगातार शरीर में से घटाया जाता जाता है और वायु तत्व को बढ़ाया जाता है.परिणाम यह होता है कि शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वह हवा में उड़ने लगता है और सैकड़ों मील प्रति घंटे की त्वरित गति से आकाश में यात्रा कर सकता है.
भारतीय योग में भी इसके प्रमाण हैं.शिवसंहिताकार
ने कहा है कि इस प्राणायाम के अभ्यास के द्वारा योगी प्रारंभ में हाथ संचालित करते
ही मेढ़क की भांति कूदने लगता है और सिद्ध होने पर पद्मासन लगाये - लगाये पृथ्वी
छोड़कर आकाश में उड़ने लगता है –
ततोsधिकतराभ्यासाद्गगने चर साधकः||
योंगी पद्मासनस्थोडिप भुवमुत्सृज्य
वर्तते ||
प्राणायाम में सौकर्य(दक्षता) हेतु जो नाड़ी शोधन
किया जाता है, उसके दो प्रकार हैं –
1.समनु 2.निर्मनु.
1.समनु 2.निर्मनु.
लुंगगोम की साधना में समनु प्राणायाम
विधि का ही आत्मीकरण किया जाता है.इसके अनुसार धूम्रवर्ण एवं सतेज वायु बीज ‘यं’
का ध्यान करके इसका जप करते हुए ही पूरक,कुंभक एवं रेचक करना पड़ता है.
तिब्बती पद्धति में अनुभवी गुरु शिष्य
को अनेक वर्षों तक विविध प्राणायामों का अभ्यास कराता है और शरीर में वायु पर
यथेष्ट नियंत्रण स्थापित हो जाने पर उसे दौड़ने की शिक्षा देता है.इस साधना में गुरु
‘त्रपा’ को एक गोपनीय मंत्र भी प्रदान करता है,जिसे शिष्य इस अभ्यास के अन्तराल
में सस्वर उच्चारित करता हुआ अपने विचारों को उसी में केन्द्रित करने का प्रयास
करता है.
जिस समय साधक यात्रा करता है,उस समय वह श्वासोच्छ्वास के साथ इस गोपनीय मंत्र का मानसिक गायन तो करता ही है,साथ ही साथ यह भी ध्यान रखता है कि उसका प्रत्येक चरण मंत्र एवं प्राणायाम पर बराबर पड़े.इस समय यात्री को मौन रहना पड़ता है और इतस्तः वीक्षण(यहाँ-वहां देखना)करना छोड़ना पड़ता है.उसे अपनी दृष्टि किसी सुदूरस्थ वस्तु तथा तारा पर केन्द्रित करके यात्रा करनी होती है.चिर काल के अभ्यास के बाद साधक के चरण पृथ्वी का संस्पर्श छोड़कर आकाश में निराधार यात्रा करने लगते हैं.
अभ्यास के समय साधक को किसी लम्बे
चौड़े रेगिस्तानी मैदान में ले जाकर इसका प्रशिक्षण दिया जाता है.सामान्यतः ऐसे
अभ्यासार्थियों को ज्योत्स्नावती निशा(चांदनी रात) में जगमगाते तारों से भरे आकाश के नीचे
संध्या के साथ प्रशिक्षित किया जाता है और इसी समय उन्हें यात्रा करने का आदेश दे
दिया जाता है ,क्योंकि दोपहर एवं तृतीय प्रहर में तथा जंगलों,घाटियों एवं पहाड़ों
से भरे अंचलों में केवल सिद्धहस्त गुरुगण ही यात्रा कर पाते हैं,अन्य नहीं.
इस साधना में, यात्रा के समय,प्रत्येक
साधक को अपनी दृष्टि किसी सुदूरस्थ तारे पर केन्द्रित करके अपनी यात्रा प्रारंभ
करनी पड़ती है,और तारे के डूब जाते ही यात्रा बंद कर देनी पड़ती है.जब साधक को
प्रगाढ़ योग निद्रा एवं जाग्रत सुषुप्ति का अभ्यास हो जाता है,तब तारों के डूब जाने
पर भी साधक को यात्रा अपनी यात्रा रोकने के लिए विवश नहीं होना पड़ता.
इसका कारण यह है कि ध्यान एवं एकाग्रता
की इस प्रगाढ़ावस्था में तारे के डूब जाने पर भी ऐसे यात्री साधकों की दृष्टि उस तारे
को (ध्यान की एकाग्रता के कारण) देखती ही रहती हैं और साधक अपनी इस प्रगाढ़
योगनिद्रा में शरीर के भार का किंचिदपि अनुभव न करता हुआ पृथ्वी से ऊपर वायु में
तैरता हुआ आकाश में अखंड यात्रा करता रहता है.
सुन्दर जानकारीपूर्ण आलेख !!
ReplyDeleteप्राणायाम और उससे संबंधित लुंगगोम की बेहतरीन जानकारी .
ReplyDeleteबहुत सुंदर और जानकारीपरक आलेख.
ReplyDeleteआश्चर्यमूलक
ReplyDeleteगहन जानकारी
ReplyDeleteरोचक और बेहतरीन जानकारी। सुन्दर लेखन।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
शानदार ,अभिनव एवं रोचक जानकारी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. वीरेन्द्र जी . आभार .
Deleteसुंदर जानकारी !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. सुशील जी . आभार .
Deleteनवीन जानकारी . . .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. सतीश जी . आभार .
Deleteजानकारीपूर्ण आलेख। बधाई!
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
ReplyDeleteआपके लेख मेरे लिए बहुत ही सहायक होते हैं |आपके चुने हुए विषय बहुत ही अलग होते हैं ,आभार
अगर ये कहूं कि मैं ऐसा ही करता हूँ तो आपको बुरा नहीं लगना चाहिए। दरकार बर उड़ने की बची है। गहरे विषय पर बहुत अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteनई जानकारी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसशक्त आलेख |
ReplyDeleteमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
सादर धन्यवाद ! प्रदीप जी . आभार .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteशुक्रिया इस जानकारीभरी प्रस्तुति के लिये..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! अंकुर जी . आभार .
Deleteअध्बुध ... कितना कुछ है योग ओर आध्यात्म की दुनिया में ...
ReplyDeleteआभार इस रोचक जानकारी का ...
,रोचक और प्रभावशाली आलेख
ReplyDeleteसाधना, तंत्र, मंत्र का गहन अध्ययन किया है आपने
जिनका रहस्य उजागर किया है
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आपका ब्लॉग लेखन की दृष्टि से सही मायने में उत्कृष्ट है, बहुत कम ऐसे ब्लॉग हैं जिन पर जानकारी मूलक पोस्ट मिलती हैं। लेखन जारी रखे …… मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. ललित जी. आभार.
Deleteआप जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर के प्रोत्साहन से और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है.
योग आधारित लेख को पढ़कर ढेरों जानकारी मिली ,सुन्दर
ReplyDeleteRajivji sadar pranam, kya is vidya ka koi jankar hai jo hame gyan de sake?
ReplyDeleteRajivji sadar pranam, kya is vidya ka koi jankar hai jo hame gyan de sake?
ReplyDeleteBest Drones Under $500 for 2020
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मैं बस इस पृष्ठ पर ठोकर खाई और कहना है - वाह। साइट वास्तव में अच्छी है और अद्यतित है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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