दीपोत्सव के पर्व दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की परम्परा काफी पुरानी है.वस्तुतः धन की देवी लक्ष्मी का पूजन भारतीय सभ्यता और संस्कृति में इस कदर रच - बस गया है कि लक्ष्मी को भारतीय जीवन दर्शन का अभिन्न अंग माना जाने लगा है. इसमें वास्तविकता भी है.
कुछ लोगों का विचार है कि भारतीय संस्कृति पूर्णतः धार्मिक और आध्यात्मिक
है,भौतिक जीवन का उसमें कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है.किंतु बात ऐसी नहीं
है.भारतीय जीवन में धार्मिकता और आध्यात्मिकता के साथ ही साथ भौतिकता का भी समान
महत्व समझा गया है.हमारे जीवन के श्रेष्ठ और आदर्श चार पुरुषार्थ – धर्म,अर्थ,काम
और मोक्ष हैं.
धर्म से ही हमारे समस्त कार्य संचलित होते हैं.धर्म वस्तुतः भारतीय जीवन
पद्धति का ही दूसरा नाम है.परन्तु अर्थ और काम का महत्व भी धर्म से कम नहीं आँका
गया है. अर्थ से,हमारा जीवन सुख और सुविधाएं प्राप्त करता है,हमारा समाज और
राष्ट्र अर्थ के बल पर ही अपनी सर्वांगीण उन्नति करता है.यहाँ तक कहा गया है कि
....
सर्वे गुणाः कांचन माश्रयंते |
हमारे जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय ‘गृहस्थाश्रम’ में अर्थ और काम दोनों
की सार्थकता सिद्ध होती है.
अर्थ और काम के प्रति हमारी धारणाएं अच्छी नहीं हैं.उदात्त जीवन के लिए हम
इन्हें त्याज्य समझते हैं.संभवतः हम ऐसा इसलिए सोचते हैं कि हमारे समक्ष अर्थ और
काम का स्वरूप सदैव अतिशय और अमर्यादित ही उपस्थित होता है.
इस सन्दर्भ में लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र का विशेष महत्व है.लक्ष्मी भारतीय
संस्कृति का एक अनूठा अभिप्राय है.मंगल कलश या पूर्ण कलश से प्रस्फुटित पद्म पर
आसीन और कभी-कभी दोनों पार्श्वों में एक - एक दिग्गज से अपना अभिषेक कराती हुई लक्ष्मी
की मूर्ति भारतीय जनमानस केमानस- चक्षुओं में समायी हुई है. कलश,पद्म.दिग्गज और
स्वयं लक्ष्मी किसी न किसी उदात्त विचार से अनुप्रमाणित हैं. भारतीय
जीवन,संस्कृति या विचारधारा के मूलभूत तत्व लक्ष्मी के इस प्रतीक में एक साथ
समाहित हुए हैं.
कलश या पूर्णकलश सम्पूर्णता,संपन्नता या संवृद्धि का प्रतीक है.मनुष्य या
विराट पुरुष दोनों का प्रतीक कलश है.
पूर्ण कलश में भरा हुआ जल जीवन का रस है.कलश वस्तुतः दिव्य सौंदर्य और सृजन
का प्रतीक है.पद्म और लक्ष्मी,दोनों का जन्म जल से हुआ माना जाता है.पद्म
आध्यात्मिकता का और लक्ष्मी भौतिकता का प्रतीक है.इस प्रकार कलश आध्यात्मिक एवं
भौतिक दोनों प्रकार के तत्वों का समन्वयात्मक स्वरूप है.
पद्म की प्रतीकात्मकता तो सर्वविदित है.पद्म पृथ्वी और हिरण्यगर्भ का प्रतीक
है.पद्मपुराण में कहा गया है ............
तच्च पद्म पुराभूतं पृथिवीरूपमुत्तमम |
पद्म और सूर्य का संबंध सर्वविदित है.पद्म सूर्योदय के समय अपनी पंखुडियां
खोलता है और सूर्यास्त के साथ बंद कर लेता है.इसे ब्रह्म्रुपी ज्ञान के सूर्य से
मन रुपी कमल का विकास समझा जा सकता है. जल से स्वयं उत्पन्न होकर और स्वयंभू बनकर
पद्म दिव्यवतार का बोध कराता है.तभी पद्म का संयोग ब्रह्मा,विष्णु,और लक्ष्मी के
साथ हुआ.लक्ष्मी का तो वह लीला – पुष्प और आसन दोनों है.बिना पद्म के लक्ष्मी की तो
परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है.
पद्म कीच से उत्पन्न होकर भी सुंदर है,सुरभित है और जल में रहते हुए भी जल से
निर्लिप्त है,निर्मल है. पद्म एक शाश्वत सत्य और सनातन शिव का उदहारण प्रस्तुत
करता है.संसार रुपी कीच में उत्पन्न होकर भी संसार के मायारूपी जल से निर्लिप्त
रहना और संसारिकता के मोह से मुक्त रहना ही मानव जीवन का उच्च आदर्श है.
दिग्गज दिशाओं के,सर्वव्यापकता और सार्वभौमिकता के प्रतीक हैं.दिग्गज(बादल) जल और जीवन के स्रोत
हैं.ऐसे दिग्गजों के द्वारा लक्ष्मी का अभिषेक उन्हें राजलक्ष्मी का,जगज्जननी का
पद प्रदान करता है.
पद्म पर आसीन लक्ष्मी की मूर्ति में भारतीय संस्कृति का सार समाहित है.लक्ष्मी
वैभव एवं संपदा की प्रतीक हैं.परन्तु उनका आसन पद्म भौतिक संपन्न्ता के होते हुए
भी उससे अनासक्त और विरक्त है.लक्ष्मी की मूर्ति में हमें वस्तुतः भौतिकता एवं
आध्यात्मिकता,दोनों का समन्वय प्राप्त होता है.
भारतीय जीवन का अंतिम या चरम लक्ष्य मोक्ष माना गया है.मोक्ष का अर्थ
है,सांसारिकता से मुक्ति,भौतिक माया – मोह से मुक्ति.इस प्रकार लक्ष्मी का प्रतीक भारतीय कला और भारतीय प्रज्ञा का एक अप्रतिम अभिप्राय है,जो हमारी संस्कृति का
सच्चा स्वरूप समुपस्थित करता है.
सटीक व्याख्या सहित
ReplyDeleteसर्वदा सामायिक प्रस्तुति-
आभार भाई राजीव-
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteअच्छा व्याख्या !
ReplyDeleteनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी , राजीव भाई
ReplyDeleteनई पोस्ट -: प्रश्न ? उत्तर भाग - ५
बीती पोस्ट --: प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini
सादर धन्यवाद ! आशीष भाई . आभार .
Deleteअति सुंदर व्याख्या
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसंग्रहणीय आलेख
ReplyDeleteसार्थक सामायिक अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
भारतीय संस्कृति और लक्ष्मी पूजन के बारे में बेहद गहन विचार प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteभारतीय संस्कृति और लक्ष्मी पूजन के बारे में बहुत सुंदर आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सुंदर आलेख.
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteदिवाली आ रही है....
ReplyDeleteइस लिये लेख आवश्यक्ता की मांग भी है...
सुन्दर प्रस्तुति,,, आभार।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : "प्रोजेक्ट लून" जैसे प्रोजेक्ट शुरू होने चाहिए!!
चित्तौड़ की रानी - महारानी पद्मिनी
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteबहुत सारगर्भित प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
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