दीपोत्सव के पर्व दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की परम्परा आम है,क्योंकि लक्ष्मी
को धन की देवी माना जाता है. लेकिन धन के रक्षक अर्थात् कुबेर की पूजा का कहीं
जिक्र नहीं मिलता.बोलचाल एवं मुहावरे में कुबेर का अक्सर जिक्र होता है कि – जैसे
कहीं कुबेर का खजाना मिल गया हो.
ऐसा माना जाता है कि आरंभ में कुबेर एक अनार्य देवता थे.उनका वैदिक ब्राह्मणों
के साथ मेल नहीं बैठता था.चौथी – पांचवीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के उत्थान के
साथ, जब लक्ष्मी की,धन की देवी के रूप में प्रतिष्ठा हुई,तब लोग कुबेर को भूलने
लगे.धीरे – धीरे वे उपेक्षित होकर,दिक्पाल के रूप में मंदिरों के बाह्य अलंकरण के
साधन – मात्र रह गए.
‘वाराह पुराण’ में एक कथा है – जब ब्रह्मा ने सृष्टि रचने का उपक्रम किया,तब
उनके मुख से पत्थरों की वृष्टि होने लगी और आंधी तथा तूफ़ान आए. कुछ देर बाद,जब आंधी
शांत हुई तब उन्होंने अपने मुख से निकले हुए उन पत्थरों से एक अलौकिक पुरुष की
रचना की.फिर उसे धनाधिपति बनाकर देवताओं के धन का रक्षक नियुक्त कर दिया.वही
कुबेर के नाम से प्रख्यात हुए.
कुबेर के धन का देवता बनने के पीछे उनके पूर्वजन्म से संबंध रखने वाली भी कुछ अनुश्रुतियाँ हैं. एक अनुश्रुति है कि वे पूर्वजन्म में चोर थे.एक दिन वे एक मंदिर में चोरी करने के लिए घुसे और माल देखने के लिए, जो दीपक जलाया वह बुझ गया.इस तरह चोर ने दास बार दीपक जलाया और वह हर बार बुझता गया.इस रौशनी के जलने और बुझने को मंदिर में प्रतिष्ठित शिव ने अपनी आराधना समझ लिया.फलतः वे प्रसन्न हो गए और उनकी प्रसन्नता के कारण वह चोर,दूसरे जन्म में,धन का देवता कुबेर हुआ.
बौद्ध – ग्रंथ ‘दीर्घ-निकाय’ की अट्ठ् कथा के अनुसार कुबेर पूर्व जन्म में
कुबेर नामक ब्राह्मण थे.वे ईख के खेतों के स्वामी थे और उनके सात कोल्हू चलते
थे.एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे. इस प्रकार वे बीस हजार वर्षों तक दान करते
रहे.इसके फलस्वरूप उनका जन्म ‘चातुर माहाराजिक’ देवों के वंश में हुआ.
‘शतपथ ब्राह्मण’ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और उन्हें दुष्टों और चोरों
का नेता कहा गया है.
साहित्य में अधिकांशतः कुबेर का उल्लेख यक्ष के रूप में हुआ है.उन्हें यक्षों का राजा,यक्षेन्द्र,देव, यक्षराज आदि नामों से पुकारा गया है.ब्राह्मण साहित्य में ही नहीं,बौद्ध और जैन साहित्य में भी कुबेर का उल्लेख इसी रूप में पाया जाता है.बौद्ध साहित्य में उन्हें वेस्सवण,पान्चिक,जम्मल आदि नामों से पुकारा गया है.
कुबेर के नगर के संबंध में वर्णन है कि आलक(कुबेर का नगर),कैलास पर्वत पर,बहुत
भव्य,परकोटे से घिरा हुआ नगर है.वहां न केवल यक्ष वरण किन्नर,मुनि, गंधर्व और राक्षस भी रहते
हैं.कैलास पर्वत के उस नगर में अनेक सुंदर प्रासाद,उद्यान और झीलें हैं.संभवतः यह
भौतिक सुखों की चरम अभिव्यक्ति को अलंकृत रूप में व्यक्त करने का रूपक है.
महाभारत में कहा गया है कि सोना,वायु और अग्नि के सहारे,पृथ्वी से निकलता
है.यहाँ अग्नि से भट्ठी,वायु से धौंकनी और कुबेर से सोना निकलने का तात्पर्य जांन पड़ता है.संभवतः कुबेर ही पहले व्यक्ति हैं,जिन्होंने सोने को जमीन से निकालकर
पिघलाया.वे उत्तर दिशा के दिक्पाल कहे गए हैं. भारत में सोना उत्तर से ही आता था.
इन सभी तथ्यों से यही जान पड़ता है कि आरंभ में कुबेर एक अनार्य देवता थे और
उनका आरम्भ में वैदिक ब्राह्मणों से मेल नहीं बैठता था.बाद में,उनका वैदिक हिन्दू
धर्म में प्रवेश हुआ.देवताओं की पंक्ति में आ जाने पर,कुबेर की नाना प्रकार से
पूजा की जाने लगी.
‘गृह्य सूत्रों’ में,वैवाहिक कर्म – कांड में ईशान के साथ – साथ,कुबेर का भी
आह्वान करने का विधान है.धनद या वसुध के रूप में उनकी पूजा जनसाधारण किया करते थे.कौटिल्य ने भी लिखा है कि कुबेर की मूर्ति खजाने के तहखाने
में स्थापित की जानी चाहिए.
प्राचीन भारत में कुबेर के स्वतंत्र मंदिर होते थे.इसका पता विदिशा के निकट, बेसनगर
से प्राप्त दूसरी शती ईसा पूर्व के एक ध्वज – स्तम्भ के शीर्ष से लगता है.कुबेर का
निवास वट-वृक्ष कहा गया है.इस शीर्ष के वट –वृक्ष में एक घड़ा और रुपयों से भरी दो
थैलियाँ दिखाई गई हैं.
हेमचंद के ‘देशी नाम – माला कोश’ में यक्खरति(यक्ष रात्रि का उल्लेख है.इसमें
यक्ष –रात्रि को सुख रात्रि नाम दिया गया है कि उस दिन कुबेर की पूजा होती थी.’वाराह
पुराण’ के अनुसार ‘यक्ष रात्रि’ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनायी जाती थी.
आज कुबेर की पूजा का प्रचलन नहीं दिखाई पड़ता.ऐसा प्रतीत होता है कि चौथी – पांचवीं शताब्दी(गुप्तकाल) में वैष्णव - धर्म के उत्थान के साथ जब लक्ष्मी की धन की देवी के रूप में प्रतिष्ठा हुई तो लोग कुबेर को भूलने लगे.धीरे धीरे वे उपेक्षित होकर दिक्पाल के रूप में मंदिरों के बाह्य अलंकरण के साधन मात्र रह गए.
Interesting facts about Kuber!
ReplyDeleteThanks ! Indrani ji.
Deleteआप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 21/10/2013 कोकुछ पंखतियों के साथ नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
ReplyDeleteसूचनार्थ।
सादर धन्यवाद ! कुलदीप जी . आभार .
Deleteबेहद अच्छी जानकारी राजीव जी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! मनोज जी. आभार .
Deleteसुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी !!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! पूरण जी . आभार .
Deleteबहुत सुन्दर आलेख .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (21.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! नीरज जी . आभार .
Deleteकुबेर तो धन के खजांची हैं ... लक्ष्मी देने वाली हैं ...
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है आपने दिवाली के दिन की ....
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसंस्कृति की सरस उजास बिखेर देते हैं आप के सुलेख।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteकुबेर के संबंध में ऐतिहासिक सन्दर्भों के साथ,बहुत अच्छी जानकारी दी है .
ReplyDeleteकुबेर सम्बंधित बहुत ही अच्छी जानकारी...
ReplyDelete:-)
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteअच्छी जानकारी । क्या कुबेर रावण के भाई थे। लंका कुबेर की ती और रावण ने उन्हे हरा कर उनसे छीन ली थी कृपया प्रकाश डालें।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आ. आशा जी . आभार .
Deleteकुबेर के बारे में, रावण के सौतेले भाई होने का जिक्र मिलता है. रामायण के उत्तरकाण्ड में कुबेर के संबंध में जानकारी मिलती है.इसके अनुसार ब्रह्मा के मानस – पुत्र पुलस्त्य हुए और इनके वैश्रवण नामक एक पुत्र हुआ.इसका दूसरा नाम कुबेर था.वह अपने पिता को छोड़ कर अपने पितामह ब्रह्मा के पास चला गया और उनकी सेवा करने लगा.इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे अमरत्व प्रदान किया,साथ ही धन का स्वामी बनाकर,लंका का अधिपति भी बना दिया तथा पुष्पक विमान प्रदान किया.
इससे पुलस्त्य बहुत रुष्ट हुए और अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र – विश्रवस,उत्पन्न किया.उसने अपने भाई वैश्रवण को बड़े ही क्रूर भाव से देखा.तब कुबेर ने अपने पिता को संतुष्ट करने के लिए तीन राक्षसियां भेंट की,जिनके नाम थे – पुष्पोलट,मालिनी और रामा.पुलस्त्य के पुष्पोलट से रावण और कुंभकर्ण और रामा से खरदूषण तथा शूर्पनखा उत्पन्न हुई. ये लोग अपने सौतेले भाई कुबेर की संपत्ति को देख कर उससे द्वेष करने लगे.रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उससे मनचाहा रूप धारण करने तथा सिर कटने पर फिर जम जाने का वर प्राप्त किया.वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से निकल बाहर किया. अंततः कुबेर गंधमादन पर्वत पर चले गये.
क्या बात है .....रोचक ऐतिहासिक जानकारी ....आभार ...
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteअच्छी जानकारी राजीव जी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! संजय जी . आभार .
Deleteबहुत अच्छी जानकारी दी है आभार !
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteइस पोस्ट की चर्चा आज सोमवार, दिनांक : 21/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -31पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।
अच्छा व ग्यानकारी लेख , राजीव भाई
ReplyDeleteप्रश्न ? उत्तर भाग - ४
behtareen jaankari.......
ReplyDeleteज्ञानवर्द्धक लेख।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : चित्तौड़ की रानी - महारानी पद्मिनी
अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
सादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteइतनी सुन्दर जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ! आभार .
Deleteसादर धन्यवाद ! आभार .
ReplyDeleteआदरणीय राजीव जी आपके लेखों से ऐसी जानकारी मिल जाती है जिस तक पहुचना आसान नहीं होता ,,है ,,बिबिध बिषयों पर आपके द्वार उपलब्ध करवाये गयी जानकारे अतिउपयोगी है .सादर
ReplyDeleteकुबेर से संबंधित प्रमाणिकता के साथ ,बहुत महत्वपूर्ण जानकारी .
ReplyDeleteपुनर्जन्म परामनोविज्ञान के अंतर्गत आता है . विदेशो में इस पर काफ़ी रिसर्च चल रहे है , अपने देश में लगभग नहीं . हमारा देश इस मामले में बहुत पिछड़ा है . मै अपने प्रायोगिक अनुभव अपने हिंदी ब्लॉग के जरिये प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमे अनेक प्रश्नो के उत्तर बुद्धिजीवी वर्ग को मिल जायेंगे -
ReplyDelete-रेणिक बाफना
मेरे ब्लॉग :-
१- मेरे विचार : renikbafna.blogspot.com
२- इन सर्च ऑफ़ ट्रुथ / सत्य की खोज में : renikjain.blogspot.com
Nice post.
ReplyDeleteYaksh Raj Kuber ke baare me Jankari achchhi lagim phali baar kanhi padhne ko milaa
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